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‘भारतीय युवाओं में विराट कोहली वाली मानसिकता’, जानें पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन ने ये क्यों कहा?

‘भारतीय युवाओं में विराट कोहली वाली मानसिकता’, जानें पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन ने ये क्यों कहा?

  • भारत में युवा विश्व स्तर पर और अधिक विस्तार करना चाहते हैं-रघुराम राजन
  • भारत के युवाओं कि मानसिकता विराट कोहली जैसी-रघुराम राजन
India youth mentality is like Virat Kohli

India youth mentality is like Virat Kohli: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन ने एक बयान दिया है, जो भारत में चर्चा का विषय बना हुआ है। जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में ‘2047 तक भारत को एक उन्नत अर्थव्यवस्था बनाना: इसमें क्या होगा’ विषय पर एक सम्मेलन में बोलते हुए (RBI) के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन ने कहा, भारत के युवाओं कि मानसिकता विराट कोहली जैसी है।

भारत में युवा विश्व स्तर पर और अधिक विस्तार करना चाहते हैं। वह वैश्विक बाजार तक आसान पहुंच चाहते हैं। वह सोचते हैं कि मैं दुनिया में किसी से पीछे नहीं हूं। RBI पूर्व गर्वनर रघुराम राजन का यह बयान भारतीय इनोवेटर्स के सिंगापुर या सिलिकॉन वैली जानें वाले सवाल में आया है।

विराट कोहली का जिक्र क्यों?

पूर्व गर्वनर रघुराम राजन के बयान में विराट कोहली का नाम लिए जानें को लेकर इसकी काफ़ी चर्चा की जा रही है कि रघुराम राजन ने विराट कोहली की मानसिकता का जिक्र क्यों किया।

विराट कोहली हाल फिलहाल अपनी आईपीएल की फ्रेंचाइजी रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर की ओर से क्रिकेट खेलते नजर आ रहे हैं। आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का यह बयान ऐसे (India youth mentality is like Virat Kohli) समय में आया है जब भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली की दूसरी संतान का जन्म लंदन में हुआ है।

भारत के युवा की दुनिया बदलने की इक्षा

भारत के लोगों के बाहर के देशों में बसने को लेकर आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को लगता है कि,

‘हमें यह पूछने की ज़रूरत है कि ऐसा क्या है जो उन्हें भारत में रहने के बजाय बाहर जाने के लिए मजबूर करता है? लेकिन वास्तव में जो बात दिल को छू लेने वाली है वह इनमें से कुछ उद्यमियों से बात करना और दुनिया को बदलने की उनकी इच्छा को देखना है और उनमें से कई भारत में रहकर खुश नहीं हैं।’

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भारत में जीडीपी आंकड़ों में गड़बड़ी

समाचार एजेंसी पीटीआई ने पूर्व आरबीआई गवर्नर के हवाले से बताया, भारत लोकतंत्र से मिलने वाले लाभ उठा नहीं पा रहा है। यही कारण है कि मैंने 6 प्रतिशत की वृद्धि की बात कही। अगर आपको पता करना है कि हम अभी क्या हैं तो जीडीपी के आंकड़ों में गड़बड़ी को दूर करें। वह 6 प्रतिशत जनसांख्यिकीय लाभांश के बीच में है, यह उससे काफी नीचे है जहां चीन और कोरिया तब थे जब उन्होंने अपना जनसांख्यिकीय लाभ प्राप्त किया था। जब हम कहते हैं कि यह बहुत अच्छा है तो हम भ्रम में हैं। ऐसा इसलिए नहीं है कि हम जनसांख्यिकीय लाभांश खो रहे हैं, बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि हम लोगों को नौकरी नहीं दे रहे हैं।

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