भारत का पहला ‘स्वदेशी हाइपरलूप’ बनाने के लिए IIT मद्रास और भारतीय रेलवे ने मिलाया हाथ

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First Indigenous Hyperloop of India (Indian Railway): हम ये तो जानते ही हैं कि भारत तेज़ी से रेलवे को अत्याधुनिक बनाने की दिशा में प्रयास कर रहा है। इसी कड़ी में अब हाईस्‍पीड बुलेट ट्रेन के बाद भारत का ध्यान अब ‘स्वदेशी हाइपरलूप’ विकसित करने की ओर गया है।

जी हाँ! हम इस विषय पर आज बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि अब इस ओर एक बड़ा क़दम उठाते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मद्रास और भारतीय रेलवे ने आपसी सहयोग का ऐलान किया है, जिसके तहत यह भारत के पहले स्वदेशी हाइपरलूप को विकसित करने का काम करेंगें।

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साथ ही इस सहयोग के ज़रिए भारत में हाइपरलूप टेक्नोलॉजीज के लिए उत्कृष्टता केंद्र (Centre of Excellence for Hyperloop Technologies) भी स्थापित करने की योजना बनाई गई है।

दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में शुमार, भारतीय रेलवे ने आईआईटी मद्रास के तकनीकी सहयोग के साथ इस हाइपरलूप प्रोजेक्‍ट की शुरुआत की है। दिलचस्प रूप से सरकार इस प्रोजेक्ट के लिए ₹8.4 करोड़ का निवेश करती नज़र आएगी।

IIT मद्रास को इस प्रोजेक्ट के लिए भारतीय रेलवे से जो फंडिंग मिलेगी, वो देखा जाए तो देश में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहल को और मज़बूती प्रदान करेगी।

HyperLoop

ग़ौर करने वाली बात ये है कि आर्थिक मदद के अलावा भारतीय रेलवे रेलवे इन्हें परीक्षण सुविधाओं के निर्माण, सुरक्षा नियमों आदि को लेकर भी सहायता करता नज़र आएगा।

HyperLoop क्या है?

पर आपमें से कुछ शायद यह जानना चाहते हों की भला हाइपरलूप (Hyperloop) तकनीक क्या है? और ये किस तरह से भारतीय रेलवे को मदद कर सकेगी? तो आइए इसका जवाब भी जानते हैं!

हाइपरलूप को आप भविष्य की परिवहन तकनीक के रूप में देख सकते हैं, जिसको लेकर दुनिया भर में तेज़ी से काम चल रहा है। अगर पारंपरिक रेलवे सिस्टम से तुलना की जाए तो हाइपरलूप इससे मुख्यतः दो मायनों में अलग है।

First Indigenous Hyperloop of India

पहला, इसमें परिवहन के लिए ‘ट्यूब’ या ‘सुरंगों’ का इस्तेमाल किया जाता है। इन सुरंगो में घर्षण को कम करने के लिए अधिकांश हवा को हटाते हुए लगभग वैक्यूम जैसे हालात पैदा किए जाते हैं, जिसके चलते इन सुरंगो में गाड़ी (पॉड) की रफ़्तार 750 मील/घंटे तक हो सकती है।

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दूसरे अंतर ये है कि पारंपरिक ट्रेनों से अलग इन हाइपरलूप वाहनों (पॉड) में पहियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। जी हाँ! आपने बिलकुल सही पढ़ा, पहियों के बजाए पॉड्स में चुंबकीय उच्चावच (Magnetic Elevation) का इस्तेमाल होता है, मानों जैसे ये वाहन हवा में तैर रहे हों!

HyperLoop के फ़ायदे क्या है?

असल में दुनिया भर में HyperLoop इसलिए इतनी चर्चा में हैं क्योंकि माना ये जा रहा है कि पारंपरिक हाई-स्पीड ट्रेनों की तुलना में इसको तेज़ी बनाया जा सकता है और साथ ही इसकी संचालन लागत भी कम है।

इसके ज़रिए तेज़ी से बढ़ते शहरों में ट्रैफ़िक जैसी समस्या को भी दूर करते हुए शहरों के बीचो-बीच ऐसी सुविधाएं संभावित आर्थिक लाभ भी दे सकती हैं।

दुनिया भर में चर्चा में है HyperLoop! 

दुनिया भर में बात की जाए तो Tesla के सीईओ, Elon Musk ने अगस्त 2013 में अपना ‘Hyperloop Alpha’ नाम से पेपर प्रकाशित करते हुए इस तकनीक में रुचि दिखाई थी,

वहीं साल 2020 में अमेरिकी कंपनी Virgin Hyperloop ने दावा किया कि उसने पहली बार मानव यात्रियों के साथ अपनी अल्ट्रा-फास्ट परिवहन प्रणाली का सफल परीक्षण किया है।

HyperLoop Technology in India

इस बीच भारत में बात की जाए तो इसको लेकर रेलवे की ओर से कहा गया;

“रेल मंत्रालय को सूचित किया गया था कि 2017 में आईआईटी मद्रास में बनी ‘अविष्कार हाइपरलूप’ (Avishkar Hyperloop) नामक 70 छात्रों की एक टीम हाइपरलूप तकनीक आधारित परिवहन प्रणाली के विकास के लिए स्केलेबल और वास्तविक रूप देने की दिशा में काम रही है। और हमे गर्व है कि हम दुनिया को अपनी शानदार तकनीकों का प्रदर्शन कर रहे हैं।”

आपको बता दें यह एकलौती एशियाई टीम रही है, जिसने SpaceX Hyperloop Pod Competition-2019 में टॉप 10 में जगह बनाई थी। इतना ही नहीं बल्कि European Hyperloop Week-2021, में Avishkar Hyperloop टीम ने ‘Most Scalable Design’ अवार्ड भी जीता था।

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