High Court strict on bulldozer action: झारखंड हाईकोर्ट ने बिना कानूनी कार्यवाही पूर्ण किए निर्माण कार्य को अवैध बताकर किसी भी घर को तोड़े जानें वाले प्रशासन के फैसले को लेकर सख्ती दिखाई है। एक याचिका में सुनवाई के दौरान झारखंड हाईकोर्ट ने कहा, यादि प्रशासन को लगता है किसी के मकान में अवैध निर्माण हुआ है तो वह इसे सीधे तरीके से तोड़ने का हकरदार नही, प्रशासन को अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई के लिए कानून के अनुसार निर्धारित सभी प्रक्रियाएं पूर्ण करते हुए कोई कार्रवाई करनी होगी।
मामला गढ़वा के सीईओ की ओर से अशोक कुमार को जारी नोटिस (notice issued) के मामले में सुनवाई का है, जहा गढ़वा के सीईओ द्वारा एक लेटर जारी करते हुए याचिकाकर्ता को 24 घंटे के अंदर उन्हें मकान के सभी दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया। कहा गया कि कागजात पेश नहीं किए जाने पर अतिक्रमण माना जाएगा। प्रार्थी ने 11 मार्च को सभी कागजात सीईओ के पास जमा कर दिए। इसके बाद सर्किल इंस्पेक्टर और गढ़वा सदर पुलिस के साथ आवास पहुंचे। मकान की (High Court strict on bulldozer action) मापी की और लाल दाग लगा दिया। प्रार्थी ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राहत दी
सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के जवाब सुनने के बाद झारखंड हाईकोर्ट ने मामले को लेकर याचिकाकर्ता को राहत देते हुए अपने फैसले में प्रशासन को दो टूक में कहा, यदि प्रशासन को लगता है कि आवास का निर्माण अवैध है और अतिक्रमण किया गया है, फिर भी कानून के अनुसार सभी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद ही कार्रवाई की जा सकती है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने याचिका निष्पादित कर दी।
इसी प्रकार एक और अन्य मामले में सरकार की ओर से दायर एक अपील को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने रांची नगर निगम के वार्ड 39 के निवर्तमान पार्षद वेद प्रकाश सिंह को राहत प्रदान किया है।
दरअसल सरकार की ओर से रांची नगर निगम के वार्ड 39 के निवर्तमान पार्षद वेद प्रकाश सिंह को पार्षद पद से बर्खास्त की एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई थी। याचिका में सरकार और अभिषेक कुमार ने आरोप में कहा था कि, वर्तमान पार्षद ने तथ्यों को छिपाने का कार्य किया है जिसे लेकर उन्हें नगर विकास विभाग ने जांच के बाद अपने पद से बर्खास्त कर दिया था।
एकलपीठ ने नगर विकास विभाग के आदेशों को किया रद्द
नगर विकास विभाग ने पार्षद वेद प्रकाश सिंह ने उनको अपने पद से निष्कासित कर दिया था, जिसे लेकर वह हाईकोर्ट की एकल पीठ के सामने फैसले के खिलाफ़ प्रस्तुत हुए थे, मामले में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने पार्षद के पक्ष में फैसला सुनाते हुए
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नगर विकास विभाग के आदेशों को रद्द कर दिया था। जिसके खिलाफ सरकार हाईकोर्ट ने खंडपीठ में एकल पीठ के फैसले के खिलाफ याचिका दायर किया था, हालांकि हाईकोर्ट की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के बाद एकल पीठ के फैसले को यथावत रखते हुए पार्षद के पक्ष में फैसला सुनाया।