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SBI को 12 मार्च तक देनी होगी इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी, सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं

SBI को 12 मार्च तक देनी होगी इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी, सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं

  • इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में एसबीआई को नहीं मिली राहत,
  • सुप्रीम कोर्ट ने पूछा,'अब तक क्या-क्या किया?'
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Electoral Bonds SBI Case: देश की शीर्ष अदालत में आज चुनावी बॉन्ड मामले में एसबीआई द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई की गई। इसमें एसबीआई की ओर से पहले दी गई अवधि को बढ़ाने की माँग की गई। लेकिन अब अदालत ने इस माँग को अस्वीकार्य कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह साफ कर दिया गया है कि एसबीआई को इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी कल 12 मार्च तक चुनाव आयोग को देनी होगी।

इतना ही नहीं बल्कि चुनाव आयोग को 15 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर यह डेटा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध करवाना होगा। आपको बता दें बीती फरवरी को ही इलेक्टोरल बॉन्ड मामले पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक फैसला सुनाया गया था। इसमें बैंक और चुनाव आयोग दोनों को एक निश्चित समय के भीतर चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारियाँ सार्वजनिक किए जाने के निर्देश दिए गए।

Electoral Bonds Case: अदालत में क्या कुछ हुआ?

इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एसबीआई से कुछ सख्त सवाल भी किए। अदालत ने एसबीआई से पूछा कि पिछला आदेश 26 दिन पहले दिया गया था, इतने दिनों से बैंक ने किया कुछ किया?

आपको बता दें इस संविधान पीठ की अध्यक्षता खुद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ कर ने की। पीठ ने यह साफ तौर पर निर्देश दिए कि SBI सबसे पहले 12 मार्च यानी कल तक ही चुनाव आयोग को संबंधित विषय से पूरी जानकारी प्रदान कर दे। इसके बाद चुनाव आयोग तय अवधि यानी 15 मार्च की शाम तक इस पूरी जानकारी को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड करे।

इस मामले में SBI की ओर से यह तर्क देने की कोशिश की गई कि बैंक के पास उपलब्ध डेटा को फिर से दोबारा पूरी प्रक्रिया से गुजारना होगा। इसमें बैंक को अतिरिक्त समय लग सकता है। इसलिए बैंक की ओर से यह याचिका की गई कि उसे 12 मार्च के बजाए 30 जून तक का समय दिया जाए। लेकिन ऐसा लगता है कि अदालत SBI के तर्क से सहमत नहीं नजर आई।

आपको याद दिला दें, फरवरी के दूसरे हफ्ते में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगा दी थी। तब अदालत ने टिप्पणी की है कि यह इलेक्टोरल बॉन्ड सिस्टम सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है।

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इसके साथ ही कोर्ट की ओर से भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को साल 2019 से अब तक की सारी इलेक्टोरल बॉन्ड लिस्ट की जानकारी देने का भी फरमान सुनाया गया था।

राजनीतिक दलों ने उठाए थे सवाल

वैसे तो चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाए जाने के फैसले का विपक्षी दलों ने स्वागत किया और सरकार को घेरने की भी कोशिश की। लेकिन जब SBI की ओर से अवधि को 30 जून तक बढ़ाए जाने की याचिका दायर की गई, तभी से तमाम विपक्षी दलों ने इस पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए। विपक्षी दलों का आरोप था कि बैंक जानबूझकर आगामी लोकसभा चुनावों तक बॉन्ड की जानकारी को सामने आने से रोकना चाहता है।

बताते चलें, इस बॉन्ड योजना के लागू होने के बाद से ही विपक्ष का हमेशा से कहना रहा है कि भाजपा ने इसे अपने फ़ायदे के लिए पेश किया है, देश में कारोबारियों के साथ मिलकर भाजपा चुनावी चंदे का बड़ा हिस्सा हासिल करना चाहती थी। जाहिर है भाजपा लगातार इन आरोपों का खंडन करती रही है और पार्टी का कहना है कि बॉन्ड योजना चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने का एक प्रयास थी।

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