संपादक, न्यूज़NORTH
Israel – Hamas War: पहले ही रुस-यूक्रेन युद्ध का असर झेल रही दुनिया, अचानक एक और युद्ध का सामना करने लगी है। हम बात कर रहे हैं, फिलिस्तीन के उग्रवादी संगठन हमास और इजरायल के बीच सालों से चले आ रहे संघर्ष की, जिसने बीते हफ्ते के अंत में युद्ध का रूप ले लिया। हालात यह है कि अब तक दोनों पक्षों को मिलाकर लगभग 1100 से अधिक (करीब 700 इजरायली और 400 से अधिक फिलीस्तीनी) लोगों के मारे जाने की खबरें सामने आ रही हैं।
इस नए तनाव का असर व्यापक रूप से कई मोर्चों पर दिखने लगा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इजराइल-हमास संघर्ष के तीसरे दिन यानी 9 अक्टूबर को कच्चे तेल की कीमतें 4% से अधिक बढ़ गईं।
इजराइल और हमास के बीच लगातार हो रहे हमलों ने जैसे ही आधिकारिक युद्ध का रूप लिया, मानों पूरे मिडिल ईस्ट में आर्थिक और राजनीतिक अनिश्चितता के बादल मँडराने लगे। CNBCTV18 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 9 अक्टूबर को ब्रेंट क्रूड ऑयल का दाम $4.18 या लगभग 4.94% बढ़कर $88.76 प्रति बैरल तक पहुँच गया। वहीं शुरुआती एशियाई कारोबार के दौरान वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) क्रूड का दाम $4.23 या लगभग 5.11% बढ़कर $87.02 प्रति बैरल हो गया।
Israel – Hamas War Impact
मौजूदा समय में रूस और सऊदी अरब द्वारा उत्पादन में कटौती के चलते, कच्चे तेल की कीमतें पहले से ही आसमान छू रही थीं। लेकिन हाल में ही थोड़ी राहत की खबर आई थी, जब ब्रेंट क्रूड में लगभग 11% की और डब्ल्यूटीआई में करीब 8% तक की गिरावट दर्ज की गई। बताया जाता है कि मार्च के बाद किसी सप्ताह में यह कच्चे तेल की कीमतों में होने वाली सबसे बड़ी गिरावट रही।
लेकिन यह नया युद्ध वापस कच्चे तेल की कीमतों में आग लगा सकता है। जानकारों की मानें तो अगर इजरायल और हमास के बीच यह युद्ध जल्द नहीं रुका तो तेल की कीमतें बेलगाम भी हो सकती है।
वैसे फिलहाल तेल की कीमतों में अचानक भारी वृद्धि का संकेत तो नहीं दिया जा रहा है, लेकिन अगर हालात ऐसे ही बने रहते हैं तो ईरान जैसे देशों पर भी इसका असर देखनें को मिल सकता है। परिणामस्वरूप तेल की आपूर्ति पर भी प्रभाव पड़ सकने की गुंजाइश से इनकार नहीं किया जा सकता।
ये तमाम आशंकाएँ इसलिए भी व्यक्त की जानें लगी हैं क्योंकि इजरायल हाल में हुए हमलों के पीछे ईरान का भी हाथ होने की संभावना जता चुका है। अगर हालात और बिगड़ते हैं तो अमेरिका व अन्य देशों को सख्त रूख अपनाते हुए ईरान पर प्रतिबंध लगाने पड़ सकते हैं। दुनिया लगभग एक तिहाई तेल आपूर्ति के लिए मिडिल ईस्ट देशों पर ही निर्भर करती है।
भारत पर असर
यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि कच्चे तेल की कीमतों का सीधा संबंध महँगाई से होता है। भारत अपनी कुल जरूरत का लगभग 80 से 85% कच्चा तेल आयात करता है, जिसमें से मिडिल ईस्ट देशों की हिस्सेदारी 40-45% तक की है। ऐसे में जाहिर है अगर युद्ध की अवधि बढ़ती है, तो भारत सरकार के लिए भी चुनौतियाँ बढ़ जाएँगी।
खासकर चुनावी मौसम नजदीक होने के चलते सरकार पर पेट्रोल-डीजल की कीमतों और महँगाई को क़ाबू में रखने का भी दबाव है। जैसे-जैसे कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं, भारत में लोगों का ध्यान ऑयल कंपनियों के स्टॉक पर जा रहा है। सामने आ रही जानकारी के मुताबिक, रिलायंस इंडस्ट्रीज, भारत पेट्रोलियम, कैस्ट्रोल इंडिया, गुजरात गैस, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और महानगर गैस के शेयर अब तक लगभग 3% तक गिर चुके हैं।