संपादक, न्यूज़NORTH
NASA’s OSIRIS-REx Returns With Asteroid Sample: दुनिया भर में किसी भी अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा की जाने वाली खोज या उससे जुड़ी सफलता इसलिए भी अहम हो जाती है क्योंकि उसका प्रभाव किसी एक देश तक ना सिमटते हुए, पूरी मानवता पर पड़ता है। और प्रतिष्ठित अमेरिकी स्पेस एजेंसी – नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) ने हाल में ऐसी ही एक सफलता हासिल की है।
नासा सुदूर अंतरिक्ष से एक कैप्सूल के जरिए उल्कापिंड (एस्टेरॉयड) का सैंपल धरती पर लाने में कामयाब साबित हुआ है। नासा का यह कैप्सूल लगभग 7 सालों की यात्रा के बाद, रविवार (24 सितंबर 2023) को यूटा रेगिस्तान स्थित सेना के टेस्ट एंड ट्रेनिंग रेंज में पैराशूट के सहारे उतरा। इसमें सौर मंडल के सबसे खतरनाक उल्कापिंडों में से एक ‘बेन्नू’ (Bennu) का ‘250 ग्राम’ सैंपल होने की बात सामने आई है।
लगभग 643 करोड़ किमी की यात्रा तय करते हुए पृथ्वी के पास से गुजरते समय, नासा के OSIRIS-REx यान ने इस कैप्सूल को पृथ्वी के ऊपर 63,000 मील (100,000 किलोमीटर) दूर से छोड़ दिया था, जिसके लगभग 4 घंटे बाद, यह कैप्सूल पैराशूट के जरिये तय स्थान पर सॉफ्ट लैंडिंग कर सका।
NASA’s OSIRIS-REx Mission: अब तक का सफर
बता दें, नासा (NASA) ने 8 सितंबर 2016 को OSIRIS-REx नामक अंतरिक्ष मिशन लॉन्च किया था। OSIRI-REx का पूरा नाम है – ओरिजिंस, स्पेक्ट्रल इंटरप्रिटेशन, रिसोर्स आइडेंटिफिकेशन एंड सिक्योरिटी रिगोलिथ एक्सप्लोरर है। इस मिशन के तहत नासा का मुख्य लक्ष्य कुछ चुनिंदा उल्कापिंडों (एस्टेरॉयड) के बारे में जानकारी जुटाते हुए, उनका अध्ययन करना था।
इसी मकसद के साथ, नासा का OSIRIS-REx स्पेसक्राफ्ट दिसंबर 2018 को बेन्नू नामक उल्कापिंड के पास पहुँचा और लगभग दो सालों तक आसपास के वातावरण का आँकलन किया। लेकिन जब अक्टूबर 2020 में नासा का अंतरिक्ष यान बेन्नू के बेहद करीब पहुँच गया, तब उसने वैक्यूम स्टिक की मदद से उल्कापिंड का सैंपल इक्कठा किया।
इसके बाद अब बारी थी, इस नमूने को पृथ्वी तक लाने की। इसके लिए मई, 2021 में अंतरिक्ष यान के प्रोपल्शन सिस्टम शुरू किए गए और इसको पृथ्वी के निकट लाने का काम आगे बढ़ा। जैसे ही यह अंतरिक्ष यान पृथ्वी से लगभग एक लाख किलोमीटर दूर पहुँचा, उसने ऊपर से ही एक कैप्सूल को धरती की ओर रवाना कर दिया। यही कैप्सूल करीब 4 घंटे बाद यूटा रेगिस्तान में लैंड हुआ, जिसमें उल्कापिंड के सैंपल मौजूद थे।
अब तक सामने आई जानकारी के मुताबिक, मुख्यतः कार्बन से बने बेन्नू उल्कापिंड का कम से कम एक कप नमूना (250 ग्राम सैंपल) धरती पर आने का अनुमान लगाया जा रहा है। लेकिन फिलहाल कैप्सूल में स्थित कंटेनर को खोले जाने या उससे प्राप्त हुए संभावित नमूने के बारे में कोई आधिकारिक खुलासा नहीं किया गया है।
क्यों ज़रूरी है बेन्नू (Bennu) उल्कापिंड का अध्ययन
जैसा हमनें आपको पहले ही बताया, बेन्नू को सौर मंडल में मौजूद सबसे खतरनाक उल्कापिंडों में से एक माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि साल 2150 से 2300 के बीच बेन्नू की पृथ्वी से टक्कर हो सकती है। इसके चलते एक बड़ी तबाही की संभावनाएँ जताई जाती हैं। इसके पीछे एक तर्क यह भी दिया जाता है कि बेन्नू तुलनात्मक रूप से उस उल्कापिंड से महज 20 गुना ही छोटा है, जिसके पृथ्वी पर टकराने के चलते डायनासोरों का ख़ात्मा हो गया था।
ऐसे में वैज्ञानिक कार्बन से भरी सतह वाले इस उल्कापिंड के विषय में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करने को लेकर उत्सुक हैं। साथ ही ऐसे अंतरिक्ष नमूनों की मदद से पृथ्वी व अन्य ग्रहों के निर्माण व वातावरण संबंधी कई राज भी खुल सकते हैं।
पहले भी इक्कठा किए जा चुके हैं सैंपल
नासा की इस कामयाबी से पहले तक, किसी भी उल्कपिंड के सैंपल को धरती पर लाने की उपलब्धि ‘जापान’ के नाम दर्ज थी। जापान ने अपने हायाबुसा अंतरिक्ष मिशन के तहत इटोकावा और रयुगु नामक दो उल्कापिंडों के सैंपल पृथ्वी पर लाए थे। लेकिन जापान कुल 6 ग्राम से भी कम (करीब एक चम्मच) सैंपल इक्कठा कर पाया था।