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Zomato, Ola जैसे एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स पर हर ट्रांजैक्शन में लगेगी 1-2% अतिरिक्त फीस

Zomato, Ola जैसे एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स पर हर ट्रांजैक्शन में लगेगी 1-2% अतिरिक्त फीस

  • कर्नाटक में एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स के हर ट्रांजैक्शन पर लग सकता है एक अतिरिक्त सेस
  • प्लेटफ़ॉर्म-बेस्ड गिग वर्कर्स (सोशल सिक्योरिटी और वेलफेयर) बिल, 2024 में प्रावधान
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New Transaction Fee On Aggregator Platforms: आज के दौर में गिग वर्कर्स की अहमियत और संख्या तेजी से बढ़ रही है। डिगिटल अर्थव्यवस्था में उनका योगदान काफी अहम हो चुका है। ऐसे में अब केंद्र सरकार समेत तमाम राज्यों का भी ध्यान इस ओर जाने लगा है। इसी क्रम में कर्नाटक सरकार भी गिग वर्कर्स के सामाजिक सुरक्षा और कल्याण को लेकर एक बड़ा कदम उठा सकती है। असल में राज्य की श्रम मंत्री संतोष लाड ने हाल ही में घोषणा की है कि सरकार एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स जैसे Zomato, Swiggy, Ola, Zepto, Dunzo और अन्य पर होने पर हर ट्रांजैक्शन पर एक अतिरिक्त सेस (फीस) लगाने की योजना बना रही है।

जी हाँ! राज्य इस कदम के तहत जुटाई गई राशि का इस्तेमाल गिग वर्कर्स के कल्याण के लिए करेगा। इस नई नीति के तहत राज्य सरकार एक अलग “कर्नाटक गिग वर्कर्स सोशल सिक्योरिटी एंड वेलफेयर फंड” स्थापित करेगी। श्रम मंत्री ने स्पष्ट किया है कि यह फीस केवल ट्रांसपोर्ट सेवाओं पर लगेगी, न कि उन प्रोडक्ट्स या गुड्स पर जो कंज्यूमर्स खरीदते हैं।

New Transaction Fee On Aggregator Platforms

इस अतिरिक्त शुल्क के लगाए जाने का उद्देश्य गिग वर्कर्स की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जो फूड डिलीवरी, लॉजिस्टिक्स, राइड-शेयरिंग और अन्य प्लेटफॉर्म्स के जुड़कर अपनी सेवाएं प्रदान करते हैं। यह नया शुल्क लगभग 1-2% के बीच हो सकता है, जो हर एक ट्रांजैक्शन के आधार पर लगाया जाएगा और इसे सीधे वेलफेयर बोर्ड में ट्रांसफर किया जाएगा।

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वैसे यह तो स्पष्ट है कि कंपनियों को इससे कोई लाभ नहीं होगा, बल्कि ग्राहकों के ऑर्डर की लागत में थोड़ा सा इज़ाफा हो सकता है। कर्नाटक सरकार द्वारा प्रस्तावित “प्लेटफ़ॉर्म-बेस्ड गिग वर्कर्स (सोशल सिक्योरिटी और वेलफेयर) बिल, 2024” में इस सेस/फीस को लागू करने का प्रस्ताव है। इस बिल में गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एग्रीगेटर्स पर एक “वेलफेयर फीस” लगाने का प्रावधान है। इस फीस को हर तिमाही के अंत में राज्य सरकार को जमा करना अनिवार्य होगा।

कौन-कौन दायरे में?

जाहिर है इस बिल का दायरा काफी व्यापक है, और इसमें राइड-शेयरिंग, फूड डिलीवरी, ग्रॉसरी डिलीवरी, लॉजिस्टिक्स, ई-मार्केटप्लेस, प्रोफेशनल सर्विसेज, हेल्थकेयर, ट्रेवल और हॉस्पिटैलिटी, मीडिया सर्विसेज और अन्य प्लेटफॉर्म्स शामिल हैं।

प्रस्तावित सेस से मिलने वाली राशि का उपयोग गिग वर्कर्स के लिए स्वास्थ्य बीमा, दुर्घटना बीमा, पेंशन योजनाओं और अन्य सामाजिक सुरक्षा उपायों के रूप में किया जाएगा। इसके अलावा, एक ट्रांजेक्शन और मैनेजमेंट सिस्टम भी बनाया जाएगा, जिससे गिग वर्कर्स के भुगतानों और वेलफेयर फीस की निगरानी की जा सके।

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गिग वर्कर्स अक्सर अनिश्चित कार्य स्थितियों और आय स्थिरता की कमी से जूझते हैं। नियमित कर्मचारियों की तरह उनके पास स्थायी सामाजिक सुरक्षा लाभ जैसे कि पेंशन, स्वास्थ्य बीमा या दुर्घटना बीमा नहीं होता। इसी वजह से गिग वर्कर्स की सुरक्षा के लिए एक विशिष्ट सोशल सिक्योरिटी फंड की आवश्यकता महसूस की गई, जिससे उन्हें आवश्यक वित्तीय सहायता मिल सके। दिलचस्प यह है कि हाल में ऐसी भी खबरें सामने आई थी कि केंद्र सरकार देश भर में गिग वर्कर्स के लिए बीमा और पेंशन जैसी चीजों को अनिवार्य बना सकती है।

समर्थन और विरोध दोनों

यह खबर सामने आने के बाद से गिग वर्कर्स के समर्थन में कई यूनियनों और संगठनों ने इस बिल का स्वागत किया है, तो वहीं कुछ उद्योग निकायों ने अपनी चिंताओं को भी जाहिर किया है। NASSCOM और Internet and Mobile Association of India (IAMAI) जैसे संगठनों ने इस बिल के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स के व्यवसाय संचालन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और राज्य की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग को भी प्रभावित कर सकता है।

लेकिन माना जा रहा है कि कर्नाटक सरकार के इस बिल का उद्देश्य एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म्स पर अतिरिक्त बोझ डालना नहीं है, बल्कि गिग वर्कर्स की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि इस नए सेस से किसी भी प्रकार का “डबल टैक्सेशन” नहीं होगा।

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