Petition to write side effects of medicine on prescription rejected: दिल्ली हाईकोर्ट में दवा पर्चों में डॉक्टरों द्वारा लिखें जाने वाली दवाओं के साइड इफेक्ट्स वाली जनहित याचिका ख़ारिज कर दी है। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए सुनवाई में कहा कि विधायिका ने यह जिम्मा दवा निर्माता कंपनियों के ऊपर डाला है।
दरअसल दिल्ली हाईकोर्ट मे याचिकाकर्ता जैकब वडक्कनचेरी ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण और अनुराग तिवारी के माध्यम से कहा कि, डॉक्टर के पर्चे वाली दवाईयों में साइड इफेक्ट संबंधित जानकारी क्षेत्रीय भाषा के अनुरूप अतिरिक्त पर्ची में संबंधित डॉक्टरों के द्वारा लिख कर दिया जाए, जिससे मरीज को इलाज में दिए जा रही दवाइयों से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी नकारात्मक प्रभाव के बारे में जानकारी हो।
कोर्ट ने याचिका में सुनवाई के बाद अपने फैसले में कहा यह काम विधायिका ने दवा निर्माता कंपनियों के ऊपर डाला है। इसलिए कोर्ट को इस संबंध में आदेश देने का कोई आधार नहीं दिखता है। बता दें कि मामले की सुनवाई हाइकोर्ट चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत पीएस अरोड़ा की बेंच में हो रही थी।
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जनहित जाचिका में की गई मांग का कोई आधार नहीं
कोर्ट ने याचिका में विचार करने के बाद कहा कि,
‘चूंकि विधायिका ने यह जिम्मेदारी दवा निर्माताओं को दी है, हमें जनहित जाचिका में की गई मांग पर निर्देश जारी करने का कोई आधार नहीं दिखता।’ उन्होंने कहा, इस संबंध में आदेश या निर्देश देना न्यायिक कानून जैसा होगा। कोर्ट इसके लिए बाध्य नहीं है।’
चिकित्सक अधिक काम के बोझ तले दबे
याचिका के विरोध में केंद्र की ओर से पेश वकील ने याचिका को अव्यवहारिक बताया उन्होंने याचिका के विरोध में कोर्ट के सामने अपनी दलील में कहा कि, याचिका स्वीकार करती है कि यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कानून मौजूद है कि मरीज को दवाओं के संभावित खतरों और संभावित दुष्प्रभावों के बारे में पता है।
उन्होंने कहा कि 1945 के अधिनियम और 2015 के विनियमों में मौजूदा प्रावधान यह सुनिश्चित (Petition to write side effects of medicine on prescription rejected)करते हैं कि रोगी को जोखिम के बारे में विधिवत सूचित किया जाए। याचिका में की गई मांग डॉक्टरों के ऊपर अतिरिक्त काम का बोझ डालने का काम करेंगे जो कि पहले से ही अधिक काम के बोझ तले दबे हैं और इससे मरीजों को चिकित्सा सलाह देने में बाधा उत्पन्न होने की संभावना है।