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क्या है कावेरी जल विवाद, जिसके चलते कर्नाटक की रफ्तार पर लगा ब्रेक?

क्या है कावेरी जल विवाद, जिसके चलते कर्नाटक की रफ्तार पर लगा ब्रेक?

  • आज के समय कर्नाटक में पैदा हुई 'बंद जैसी स्थिति' का कारण 100 साल से भी अधिक पुराना है।
  • कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के हस्तक्षेप के बाद भी कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच का जल विवाद थम नहीं रहा है।
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Cauvery Water Dispute Details & Karnataka Bandh Updates: कावेरी जल विवाद फिलहाल थमनें के बजाए, दिन-प्रतिदिन और गहराता ही जा रहा है। दो दिन पहले बेंगलुरु बंद के बाद, आज शुक्रवार (29 सितंबर) को पूरे कर्नाटक की रफ्तार पर ब्रेक लगाते हुए, राज्यव्यापी बंद आयोजित किया गया।

⚈ कर्नाटक के मौजूदा हालात

राज्य भर में इस बंद को कई संगठनों का समर्थन मिल रहा है। बंद का समर्थन करने वाले लोग सड़कों पर उतर पर व्यापक रूप से विरोध प्रदर्शन की कोशिशें भी कर रहे हैं। स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि बेंगलुरु सहित पूरे राज्य में अधिकांश दुकानें, ऑटोरिक्शा, कैब सेवा, होटल, स्कूल भी इस बंद के चलते प्रभावित हुए हैं।

कई इलाकों में खुद प्रशासन की ओर से शिक्षण संस्थानों आदि में छुट्टी का ऐलान तक करना पड़ा है। यहाँ तक कि ख़बरों के मुताबिक बेंगलुरु के केम्पेगौड़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से आने-जाने वाली लगभग 44 उड़ानों को रद्द करने की नौबत आ गई। सभी संवेदनशील स्थानों पर प्रशासन ने सतर्कता बढ़ा दी है।

⚈ क्या है वजह?

देश के एक राज्य में इतना कुछ हो रहा है, लेकिन क्या आपको इन सब के पीछे की वजह पता है? अगर हम आपसे कहें कि आज के समय कर्नाटक में पैदा हुई ‘बंद जैसी स्थिति’ का कारण 100 साल से भी अधिक पुराना है, तो आपको कैसा लगेगा? लेकिन यह सच है!

जी हाँ! हम बात कर रहे हैं कावेरी जल विवाद की, जिसके चलते मौजूदा हालात इतने बिगड़ चुकें हैं। लेकिन आखिर ये कावेरी जल विवाद है क्या और इतने सालों से अब तक इसका हल क्यों नहीं निकल सका है? आइए इन सभी प्रश्नों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं!

⚈ कावेरी नदी के बारे में

कावेरी जल विवाद के बारे में जाननें से पहले जरूरी है कि कावेरी नदी और इसकी भौगोलिक स्थिति के बारे में समझ लिया जाए! दक्षिण भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक मानी जाने वाली कावेरी नदी का उद्गम कर्नाटक स्थित कोडागु जिले के पास से होता है। ‘बंगाल की खाड़ी’ में गिरने से पहले 800 किलोमीटर से भी अधिक लंबी ये नदी भारत के दो अन्य राज्यों – तमिलनाडु और पुडुचेरी से होकर गुजरती है।

कावेरी का कुल बेसिन क्षेत्र लगभग 81,155 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसमें से सबसे अधिक लगभग 34,273 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा कर्नाटक में आता है। जबकि तमिलनाडु और पांडिचेरी में 44,016 वर्ग किलोमीटर तथा केरल में लगभग 2,866 वर्ग किलोमीटर जल संभरण क्षेत्र आता है।

⚈ क्या है विवाद की पूरी कहानी

जैसा हमनें आपको पहले ही बताया कि कावेरी जल विवाद कोई नया नहीं बल्कि 100 साल से भी अधिक पुराना है। इसका संबंध 1892 और 1924 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर राज्य के बीच हुए समझौते से है, जिसके तहत दोनों राज्यों के बीच कावेरी जल बँटवारे को लेकर सहमति बनाने की कोशिश की गई थी।

लेकिन भारत की स्वतंत्रता तथा कर्नाटक और तमिलनाडु नामक दो राज्य बन जाने के बाद, साल 1974 के आसपास ‘कावेरी जल विवाद’ फिर सामने आने लगा। कर्नाटक पर आरोप लगा कि उसने तमिलनाडु के साथ आपसी सहमति के बिना, नदी के पानी को रोकना और मोड़ना शुरू कर दिया था।

विवाद को बढ़ता देख, साल 1990 में ‘कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण’ या ‘CWDT’ की स्थापना की गई। फिर जून 1991 को ही न्यायाधिकरण ने एक अंतरिम आदेश के तहत कर्नाटक राज्य को पानी छोड़ने के निर्देश दिए। लेकिन विवाद थम नहीं सका। और अंततः 2007 में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण ने कावेरी जल को चार तटवर्ती राज्यों के बीच विभाजित करने का फ़ैसला किया।

इस विभाजन के तहत कुल 740 हजार मिलियन क्यूबिक फीट को चार राज्यों के बीच कुछ इस प्रकार बाँटा गया, जिससे तमिलनाडु को 404.25 हजार मिलियन क्यूबिक फीट, कर्नाटक को 284.75 हजार मिलियन क्यूबिक फीट, केरल 30 हजार मिलियन क्यूबिक फीट, और पुडुचेरी को 7 हजार मिलियन क्यूबिक फीट जल मिलना सुनिश्चित हुआ था।

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आगे चलकर, साल 2018 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट ने भी पहुँचा था। इसमें अदालत ने कर्नाटक को सामान्य बारिश होने पर, हर साल जून से मई के बीच तमिलनाडु के लिए 177 हजार मिलियन क्यूबिक फीट पानी छोड़ना अनिवार्य कर दिया था। लेकिन बारिश में दर्ज की जानें वाली अनियमितताओं का हवाला देते हुए, यह विवाद अभी भी रह-रह कर सामने आता रहता है और इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ।

⚈ Cauvery Dispute & Karnataka Bandh: हाल में फिर क्यों गरमाया मुद्दा?

हुआ ये कि पिछले हफ़्ते ही तमिलनाडु सरकार ने किसानों की ज़रूरतों का हवाला देते हुए, कर्नाटक सरकार से रोजाना 24,000 क्यूसेक पानी छोड़ने की माँग की थी। इसके लिए देश की सर्वोच्च अदालत में एक याचिका तक दाखिल की गई थी।

लेकिन कर्नाटक सरकार ने भी कम बारिश को कारण बताते हुए, पानी छोड़ने से इनकार कर दिया। इसके बाद जब मामला कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के पास पहुँचा तो इसने कर्नाटक को 10,000 क्यूसेक पानी छोड़ने के निर्देश दिए। तमिलनाडु का आरोप है कि कर्नाटक ने इस निर्देश का पालन ना करते हुए, कम (लगभग 8,000 क्यूसेक) पानी छोड़ा।

इसके बाद एक बार फिर कावेरी जल प्रबंधन न्यायाधिकरण हरकत में आया और कर्नाटक सरकार को 13 सितंबर से 15 दिनों के भीतर तमिलनाडु को 5,000 क्यूसेक पानी देने के लिए कहा। मतलब ये कि कर्नाटक को 28 सितंबर तक 5,000 क्यूसेक पानी तमिलनाडु को देना था।

इस बीच कर्नाटक सरकार ने न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। लेकिन राज्य सरकार को एक बड़ा झटका तब लगा जब अदालत ने न्यायाधिकरण के आदेश में कोई भी हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए, याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद से ही कर्नाटक में कई राजनैतिक व किसान संगठनों ने तमिलनाडु को पानी दिए जाने का विरोध करना शुरू कर दिया और देखते ही देखते स्थिति राज्यव्यापी बंद तक की आ गई। और राज्य के ताजा हालात से हम आपको पहले ही रूबरू करवा चुके हैं।

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