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Koo ऐप द्वारा एल्गोरिदम को सार्वजनिक करने के क्या हैं असल मायनें?

Koo ऐप द्वारा एल्गोरिदम को सार्वजनिक करने के क्या हैं असल मायनें?

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Koo Makes Algorithms Public: तेज़ी से Twitter के एक बड़े स्वदेशी विकल्प के रूप में उभरने वाले सोशल मीडिया ऐप Koo ने अब सबक़ों चौंकने वाला क़दम उठाया है। असल में कंपनी में अपने प्लेटफ़ॉर्म के ‘मूल एल्गोरिदम’ को सार्वजनिक कर दिया है।

जी हाँ! दावे के मुताबिक़, Koo अब पहला ऐसा बड़ा सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म बन गया है, जिसने अपने ऐप के एल्गोरिदम व उसके काम करने के तरीक़े को सार्वजनिक रूप से सबके सामने पेश कर दिया है।

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कंपनी के अनुसार यह क़दम उपयोगकर्ताओं के हितों को देखते हुए, आज के इंटरनेट के दौर में पारदर्शिता और निष्पक्षता की अपनी प्रतिबद्धता को मज़बूत बनाने के इरादे से उठाया गया है। अब लोग Koo के एल्गोरिदम को इसकी वेबसाइट पर जाकर देख सकते हैं।

पर शायद आपमें से बहुत से लोग ये सोच रहें होंगें कि आख़िर Koo के एल्गोरिदम के ‘सार्वजनिक’ होने के क्या मायने हैं। और भला उपयोगकर्ताओं को इसका फ़ायदा कैसे हो सकता है?

आइए पहले समझते हैं एल्गोरिदम होता क्या है? 

असल में एल्गोरिदम को एक तरीक़े से ‘क्रमबद्ध फ़ॉर्मूले’ के तौर पर समझा जा सकता है, जो किसी भी इंटरनेट प्लेटफ़ॉर्म पर यूजर्स के व्यवहार और उनकी पसंद को देखते हुए, स्वचालित रूप से यह तय करता है कि आख़िर उस यूज़र को ऐप पर किस तरीक़े का कंटेंट दिखाया जाए।

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इसको मोटे तौर पर इस प्रकार समझिए कि प्लेटफ़ॉर्म का एल्गोरिदम ही यह तय करता है कि उस ऐप को खोलने पर आपके सामने कौन सा या किसका पोस्ट दिखाई देगा? इसके ज़रिए कोई भी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म हर एक उपयोगकर्ता के लिए अलग-अलग कंटेंट को दिखा कर, प्रासंगिग बनने का प्रयास करता है।

मतलब यह कहा जा सकता है कि एल्गोरिदम ही ऐप पर यूज़र एक्सपिरियंस को तय करने में अहम रोल निभाता है।

Koo App made its Algorithms Public

इस क़दम को लेकर Koo ऐप के सह-संस्थापक और सीईओ, अप्रमेय राधाकृष्ण (Aprameya Radhakrishna) ने कहा,

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“Koo ऐप के ज़रिए हमारा हमेशा ये प्रयास रहा है कि पारदर्शिता बरतते हुए यूज़र्स के भरोसे को बढ़ावा दिया जाए। हमारे एल्गोरिदम किसी बाहरी या अनुचित हस्तक्षेप और पूर्वाग्रह से प्रभावित हुए बिना अपना काम करते हैं।”

“हमारे एल्गोरिदम के बारे में खुलकर बात करना हमारी इस मंशा को दर्शाता है कि हमारे यूज़र्स ये समझें कि Koo ऐप में किसी भी तरीक़े का कोई छिपा हुआ एजेंडा नहीं परोसा जा रहा है।”

वैसे सिर्फ़ एल्गोरिदम ही नहीं बल्कि Koo ने शुरू से ही सभी उपयोगकर्ताओं का भरोसा जीतने के लिए अपनी तमाम पॉलिसी आदि को कई भाषाओं में वेबसाइट पर पब्लिश भी किया है।

ज़ाहिर है आज के दौर में जब Twitter और Facebook जैसे दिग्गज सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म लोगों का विश्वास हासिल करने के लिए जूझते नज़र आ रहें हैं, वहीं इस भारतीय प्लेटफ़ॉर्म ने अब निष्पक्ष और विश्वसनीय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिए नए मायनों को गढ़ना शुरू कर दिया है।

आपको याद दिला दें इसी दिशा में कंपनी ने कुछ ही दिनों पहले Koo Self Verification नामक प्रक्रिया की शुरुआत की थी, जिसके तहत कोई भी यूज़र्स अपने वैध सरकारी पहचान प्रमाण के सहारे सिर्फ़ 30 सेकेंड में ख़ुद के अकाउंट को वेरिफाई करवा सकता है।

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