संपादक, न्यूज़NORTH
Facebook, Twitter & YouTube on Taliban: अफगानिस्तान में तालिबान के क़ब्ज़े के चलते वहाँ एक ओर जनता को तो ढेरों मुश्किलें हो ही रहीं हैं, लेकिन इस घटना ने सिलिकॉन वैली आधारित टेक दिग्गजों के सामने भी एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
बीते कुछ दशकों में शायद पहली बार फेसबुक (Facebook), ट्विटर (Twitter) और यूट्यूब (YouTube) जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को तालिबान को इंटरनेट पर नियंत्रित करने के लिए इतने आक्रामक रूप प्रयास करने पड़ रहें हैं।
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इसमें कोई शक नहीं है कि आतंकी संगठन के रूप में पहचाने जाने वाले तालिबान द्वारा हिंसक तरीक़े से अफगानिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़ा करना बेहद चिंताजनक विषय है।
भले शुरू में तालिबान अपने को बदला हुआ दिखाने कि कोशिश कर रहा हो, लेकिन गुजरते वक्त के साथ इसमें वही पुराने हिंसक और क्रूर तालिबान की झलक साफ़ नज़र आ रही है, फिर भले वह महिलाओं के खिलाफ़ अत्याचार की बात हो, या फिर आज ही हेरात यूनिवर्सिटी में लड़के-लड़कियों की साथ में शिक्षा प्राप्त करने की प्रथा के ख़िलाफ़ कथित रूप से फ़तवा जारी करने की।
लेकिन दुनिया के कुछ देशों ने तालिबान के द्वारा अफगानिस्तान में सरकार का स्ट्रक्चर तय करने के बाद, उसको मान्यता देने पर विचार करने का ऐलान कर दिया है।
How Facebook, Twitter, and YouTube are dealing with Taliban?
पर ऐसे में एक बड़ी मुश्किल Facebook और Google के मालिकाना हक वाले YouTube जैसे प्लेटफ़ॉर्म के लिए भी खड़ी होती नज़र आ रही है, क्योंकि फ़िलहाल इन कंपनियों ने अमेरिकी क़ानूनों के तहत तालिबान को बतौर आतंकी संगठन अपने प्लेटफ़ॉर्म पर प्रतिबंधित (बैन) कर रखा है।
वहीं दूसरी ओर भले Twitter ने अब तक तालिबान पर प्रतिबंध नहीं लगाया है, लेकिन कथित तौर पर कंपनी तालिबान से जुड़े हिंसक और नियमों का उल्लंघन करने वाली कंटेंट पर नकेल कस रहा है।
17 अगस्त को Facebook की ओर से जारी किए गए एक बयान में कहा गया था कि कंपनी अपने प्लेटफ़ॉर्म पर तालिबान के समर्थन से जुड़े या इस आतंकी संगठन से जुड़े किसी भी व्यक्ति के अकाउंट को बैन करता रहेगा।
साथ ही Facebook के ही मलिक़ाना हक वाले WhatsApp और Instagram पर भी समान पॉलिसी प्रभावी रहेगी। इन प्लेटफ़ॉर्मों पर अगर कंपनी को तालिबान द्वारा या उसकी ओर से बनाए गए अकाउंट्स नज़र आते अहीन तो वह उन्हें हटा देगी।
दिलचस्प ये है कि Facebook ने कुछ स्थानीय अफगानिस्तान के विशेषज्ञों की भी एक टीम भी बनाई है, जो दारी और पश्तो भाषा से अच्छी तरह परिचित हैं और ऐसे स्थानीय भाषा में पब्लिश किए जाने वाले कंटेंट पर पैनी नज़र रखने का काम कर रहें हैं।
इन सब के बीच कई मीडिया रिपोर्ट्स मीन ये दावा किया गया है कि तालिबानी आपस में कम्यूनिकेशन के लिए WhatsApp का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहें हैं।
ऐसी खबरें सामने आने के बाद WhastApp की ओर से कहा गया;
“एक प्राइवेट चैटिंग प्लेटफ़ॉर्म के नाते हम लोगों की पर्सनल चैट तक तो पहुँच नहीं बना सकते, लेकिन अगर हमें ये पता चलता है कि किसी प्रतिबंधित आतंकी संगठन या व्यक्ति द्वारा WhatsApp का इस्तेमाल किया जा रहा है तो हम कार्रवाई करते हैं और आगे भी करते रहेंगें।”
वहीं YouTube के एक प्रवक्ता की ओर से कहा गया कि अगर कम्पनी को तालिबान के द्वारा या इसके समर्थन में बना कोई चैनल नज़र आता है तो कम्पनी उसको तुरंत प्लेटफ़ॉर्म से डिलीट कर देती है। कंपनी के अनुसार, उनकी नीतियाँ पहले से ही हिंसा को भड़काने वाले कंटेंट को प्रतिबंधित करती हैं।
कंपनियों के लिए दुविधा ये भी है कि अगर सभी तरह के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म से तालिबान शब्द का इस्तेमाल करने वाले खातों तक को अगर हटाना शुरू कर दिया गया तो अफगानिस्तान के लोगों द्वारा मदद हासिल को लेकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी नहीं किया जा सकेगा।
लेकिन इस तर्क के साथ कंपनियाँ ढीली भी नहीं पड़ सकती हैं क्योंकि अगर तालिबान को सोशल मीडिया पर अधिक लोकप्रिय होने दिया गया तो सम्भव है कि आतंकवादी और कट्टर विचारधारा के समर्थकों को ऐसे शासन को सही ठहराने और बढ़ावा देने का अवसर मिल जाएगा।
Politico की एक न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक़, फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और माइक्रोसॉफ्ट द्वारा “आतंकवादियों और हिंसक चरमपंथियों को डिजिटल प्लेटफॉर्म का शोषण करने से रोकने के लिए” शुरू किया गया एक ग्रुप – ग्लोबल इंटरनेट फोरम टू काउंटर टेररिज्म ने आधिकारिक रूप से सोशल मीडिया पर तालिबान से डील करने को लेकर कोई रणनीति नहीं बनाई है, और इस पर अपने निर्णय को अलग-अलग प्लेटफार्मों पर ही छोड़ दिया है।