संपादक, न्यूज़NORTH
कल भारत सरकार ने वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्मों और सोशल मीडिया आदि के लिए नई गाइडलाइंस पेश की हैं। और इसके बाद से ही भारत में मैसेजिंग ऐप (Messaging Apps) की सबसे बड़ी और अहम ख़ासियत के खोने को लेकर चर्चा तेज हो गई है।
असल में देश में तमाम Messaging Apps हैं, जिनके पास बेहद बड़ा उपयोगकर्ता आधार है, जैसे WhatsApp, Telegram, Signal आदि। और ये इन तमाम प्लेटफ़ॉर्मों की ख़ासियत ये है कि इनमें यूज़र्स की प्राइवेसी के लिए एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन मौजूद होता है। (हालाँकि WhatsApp इसको लेकर विवादों में रहा है)
आसान भाषा में बताएँ तो एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन (end-to-end encryption) का मतलब होता है कि प्लेटफ़ॉर्म को चलाने वाली कंपनी ख़ुद ये नहीं जान सकती कि कौन सा यूज़र किसको, कब और क्या मैसेज कर रहा है। (हाँ! कम से कम अब तक आधिकारिक तौर पर तो ये कंपनियाँ यही दावा करती हैं।)
नए क़ानूनों के तहत सरकार ने इन तमाम कंपनियों को आदेश दिया है कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता और अन्य कई गंभीर तरह के अपराधों से संबंधित पोस्ट आदि के बारे में कुछ चुनिंदा जानकारी माँगे जाने पर उन्हें सरकार को जानकरियाँ प्रदान करनी होंगी?
ज़ाहिर है पहली बार सुनने में इसमें भला क्या कमी नज़र आती है? सही तो है, कोई भी गंभीर आपराधिक पोस्ट करने वाले के खिलाफ़ कार्यवाई करने का सरकार के पास पूरा हक़ है और ये ज़रूरी भी है।
लेकिन अब इस नियम या आदेश का एक और पहलू है, जिसके चलते कई जानकारों का के बीच ये चर्चा है कि कहीं ये नए नियम यूज़र्स की प्राइवेसी और अभिव्यक्ति की आज़ादी को कमजोर तो नहीं करेंगे?
बता दें सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सरकार इन मैसेजिंग प्लेटफॉर्म्स पर एन्क्रिप्शन को हटाने को लेकर कोई जोर नहीं दे रही है। उन्होंने कहा;
“जब हम प्लेटफ़ॉर्म से किसी जाँच के संबंध में जानकारी जुटाएँगे तो इसका मतलब ये नहीं है कि उन्हें कंटेंट का ख़ुलासा करना होगा। बल्कि हमारा सीधा सा प्रश्न ये रहेगा कि ये शरारत किसने शुरू की? और ये जानकारी भी केबल उन मामलों में माँगी जाएगी जहां सजा पांच साल या उससे अधिक की हो, जैसे कि सुरक्षा, भारत की संप्रभुता, बलात्कार आदि।”
इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री ने यह भी आश्वासन दिया कि कानून के दुरुपयोग से बचने के लिए उचित “सुरक्षा उपाय” बनाए गए हैं।
असल में नियमों के तहत, किसी भी मध्यस्थ को मूल या अन्य उपयोगकर्ताओं से संबंधित किसी संदेश या जानकारी का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं होगी। यदि कोई पोस्ट विदेशी देश में किया जाता है, तो भारत में उसको सबसे पहले शेयर करने वाली को ही “पोस्ट ओरिज़नेटर (सबसे पहले पोस्ट करने वाला)” माना जाएगा।
साथ ही इन नियमों के आधार पर उन मामलों में कोई आदेश पारित नहीं किया जाएगा जहां किसी कम दखल देने वाले व्यक्ति की प्राइवेसी आदि प्रभावित हो।
पर फिर दिक्कत कहाँ है?
असल में जानकारों का मानना है कि इन मैसेजिंग ऐप्स (Messaging Apps) में किसी भी तरह की ट्रेसबिलिटी को मंज़ूरी देना असल में लोगों की प्राइवेसी को प्रभावित कर सकता है।
वहीं ईटी की एक रिपोर्ट के अनुसार विशेषज्ञों ने कहा कि ये नए नियम संभवतः किसी भी लोकतांत्रिक देशों में तुलनात्मक रूप से सबसे सख्त कहे जा सकते हैं।
असल में मैसेजिंग ऐप्स (Messaging Apps) को ट्रेसबिलिटी को सक्षम करने और सरकार द्वारा आई किसी माँग को पूरा करने के लिए अपने प्लेटफ़ॉर्म के तकनीकी बुनियादी ढांचे और ऑपरेटिंग मॉडल में कई बड़े बदलाव करने पड़ सकते हैं।
लेकिन ज़ाहिर है कई लोगों ने नियमों का स्वागत भी किया है और उनका तर्क है कि नियमों में साफ़ है कि किसी भी तरह कि मैसेज आदि को ट्रैक नहीं करना है। किसी मैसेज को शुरू करने वाले व्यक्ति की पहचान के लिए प्लेटफ़ॉर्म कुछ ख़ास KYC तरह की प्रक्रिया का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
लेकिन एक सवाल है जिसका जवाब शायद अब इन कंपनियों को तलाशना पड़े कि भला कैसे एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन को ख़त्म किए बिना किसी मैसेज को शुरू करने वाले व्यक्ति को ट्रेस किया जा सकता है?
क्योंकि असल चिंता इसी मुद्दे पर है कि एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन के साथ अगर कोई छेड़छाड़ कंपनियों ने की तो वो सीधे तौर पर नागरिकों की प्राइवेसी से तो समझौता नहीं करेंगी?
आपको बता दें इसके लिए पहले भी सरकार ने WhatsApp से कुछ मसलों में कहा था कि वह प्लेटफॉर्म पर भेजे गए हर संदेश के एन्क्रिप्शन को ख़त्म किए बिना एक डिजिटल फिंगरप्रिंट के रूप का इस्तेमाल कर सकता है, ताकि कंपनी सिर्फ़ इतनी पहचान कर पाए कि कोई ख़ास मैसेज कहाँ से उत्पन्न हुआ और कितने लोगों ने इसको आगे शेयर किया?
वहीं WhatsApp कई बार ट्रेसबिलिटी की मांग का विरोध कर चुका है और उसने उपयोगकर्ता की प्राइवेसी का हवाला देते हुए कहा था कि वह एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन पर समझौता नहीं करेगा। बता दें WhatsApp भारत में क़रीब 400 मिलियन से अधिक उपयोगकर्ता के होने का दावा करता है।
पर इनकार तो इस बात से भी नहीं किया जा सकता है कि ये सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म या मैसेजिंग ऐप्स कई बात फ़ेक ख़बरों को फैलाने के प्रमुख माध्यम बनकर उभरे हैं और शायद इसलिए सरकार ऐसे लोगों, जो फ़ेक ख़बरें फैलाते हैं, उनके ख़िलाफ़ सटीक कार्यवाई कर फ़ेंक न्यूज़ आदि पर नकेल कसना चाहती है, क्योंकि कई बार इन फ़ेंक ख़बरों व अफ़वाहों की वजह से कई लोगों की मृत्यु तक होने के मामले सामने आते रहें हैं। ।
अब देखना ये है कि इन तमाम मैसेजिंग प्लेटफ़ॉर्म की इन नए नियमों पर क्या राय होती है और कब तक वो इन नियमों को लेकर कोई आधिकारिक बयान जारी करेंगें या इनके पालन को लेकर अपनी सहमति व्यक्त करेंगें?