Indefinite protest by farmers in Delhi: एक बार फ़िर से राजधानी में किसान आंदोलन शुरू हो सकता है, संयुक्त किसान मोर्चा के पदाधिकारियों ने चेतावनी दी है कि उन्हें दिल्ली जाने से रोका गया तो बॉर्डर पर दिन-रात डेरा डालकर अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर देंगे। जानकारी के मुताबिक, सोमवार को 10 किसान संगठनों ने दिल्ली में संसद घेराव करने का फैसला किया है। किसान यमुना प्राधिकरण को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। दिल्ली कूच किसानों के आंदोलन का तीसरा और आखिरी चरण है, इससे पहले ग्रेटर नोएडा में यमुना प्राधिकरण पर आंदोलन किया गया था।
सुबह 9 से लेकर 5 बजे तक दिल्ली के लिए रोजाना मार्च
संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से जारी की जानकारी के अनुसार, सुबह 9 से लेकर 5 बजे तक उनका दिल्ली के लिए रोजाना मार्च जारी रहेगा। अगर रास्ते में समय पर वह तय जगह नहीं पहुंच पाए तो वह सड़क पर ही मोर्चा लगा देंगे। इसी तरह मोर्चे की तरफ से सोमवार से वॉलंटियर को जोड़ने के लिए मेंबरशिप ड्राइव भी शुरू की जाएगी। दोपहर 3 बजे के बाद मोर्चे के सोशल मीडिया अकाउंट पर इस संबंध में फार्म उपलब्ध करवाए जाएंगे।
एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग
किसान यमुना प्राधिकरण को लेकर विरोध प्रदर्शन तो कर रहें है, इसके साथ ही कई और मांगे केंद्र सरकार से किसानों ने रखी है। जिसमें एक सबसे बड़ी मांग एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग है, किसानों का आरोप है कि केंद्र सरकार ने 18 फरवरी के बाद किसानों से कोई बातचीत नहीं की। इससे पहले सरकार ने एमएसपी पर दालें, मक्का और कपास खरीदने का प्रस्ताव दिया था, जिसे किसानों ने अस्वीकार कर दिया।
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कौन- कौन से संघटन होंगे शामिल?
संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक), किसान मजदूर मोर्चा, भारतीय किसान यूनियन (शहीद भगत सिंह), भारतीय किसान परिषद (बीकेपी), किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) जैसे किसानों के संगठन अपनी अलग अलग मांगो को लेकर दिल्ली में एक विशाल धरना प्रदर्शन करने की योजना बना चुके थे, जिससे दिल्ली और NCR में प्रशासन के एक बार फिर (Indefinite protest by farmers in Delhi) हाथ-पांव फूलने लगे हैं।
इस बीच हरियाणा के कृषि मंत्री श्यान सिंह राणा ने किसानों के आगामी दिल्ली मार्च की आलोचना की और कहा कि उनके पास वैध मुद्दे नहीं हैं। राणा ने करनाल में पत्रकारों से कहा, “उनके पास कोई मुद्दा नहीं है। पिछले किसान आंदोलन में एक मुद्दा था- तीन कृषि कानून। उन तीन कानूनों को बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रद्द कर दिया था और उन्होंने माफी भी मांगी थी,किसानों के आंदोलन से पंजाब को नुकसान हुआ है।”