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यूपी में बड़ा बदलाव, प्रोडक्शन शुरू करने के लिए ‘लेटर ऑफ कम्फर्ट’ की अनिवार्यता खत्म

यूपी में बड़ा बदलाव, प्रोडक्शन शुरू करने के लिए ‘लेटर ऑफ कम्फर्ट’ की अनिवार्यता खत्म

  • अब लेटर आफ कम्फर्ट के लिए आवेदन करने की जरूरत नहीं
  • यूपी में नए उद्योगों और निवेशकों को बड़ी राहत, हुए बड़े बदलाव
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Letter of Comfort (LOC) Requirement Abolished By Uttar Pradesh Government: उत्तर प्रदेश की सीएम योगी के नेतृत्व वाली सरकार ने टेक्सटाइल सेक्टर में निवेश को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से नई पॉलिसी लागू करते हुए कई बड़ी राहतें प्रदान की हैं। इस नई पॉलिसी के तहत उद्योगों को कई प्रकार की प्रशासनिक रियायतें दी गई हैं, जिससे प्रदेश में हैंडलूम, पावरलूम, सिल्क और गारमेंटिंग क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिलेगा। सरकार ने इसके लिए विस्तृत नियमावली जारी की है और पुराने नियमों में बदलाव कर नई व्यवस्था लागू की है।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लागू की गई ये नई पॉलिसी और रियायतें मुख्य रूप से प्रदेश में टेक्सटाइल बिजनेस को तेजी से बढ़ावा देने में मददगार साबित हो सकती हैं। इससे न सिर्फ नए उद्योगों और निवेशकों को बड़ी राहत मिलेगी बल्कि रोज़गार के भी नए अवसर पैदा होने की संभावना जताई गई। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कई बड़े बदलावों की बात सामने आई है।

Letter of Comfort (LOC) की अनिवार्यता समाप्त

इस क्रम में पहले जहां उत्पादन शुरू करने वाली इकाईयों के लिए लेटर ऑफ कम्फर्ट (LOC) के लिए आवेदन अनिवार्य था, वहीं अब यह अनिवार्यता हटा दी गई है। इसका उद्देश्य प्रशासनिक प्रक्रिया को सरल बनाना और निवेशकों का समय बचाना है। अब प्रोडक्शन शुरू करने के बाद इकाईयों को सीधे फंड वितरण के लिए प्रारूप 2 पर आवेदन करने की अनुमति होगी। इस नई सुविधा के तहत, कंपनियों को थर्ड पार्टी अप्रेजल के लिए भी आवेदन नहीं करना होगा, जो पहले की नीति में अनिवार्य था।

उत्तर प्रदेश हैंडलूम पावरलूम सिल्क, टेक्सटाइल एवं गारमेंटिंग नीति के अंतर्गत निवेशकों को दो चरणों में आवेदन करने का प्रावधान दिया गया है। यदि इकाई ने पहले ही उत्पादन शुरू कर दिया है, तो उसे अब LOC (Letter of Comfort) के लिए आवेदन करने की जरूरत नहीं होगी, जिससे वे सीधे फंड वितरण के लिए आवेदन कर सकते हैं।

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इतना ही नहीं बल्कि विस्तारीकरण इकाईयों/यूनिट्स के मामले में प्रोडक्शन क्षमता का आकलन उन पर स्थापित मशीनरी की क्षमता के आधार पर किया जाएगा, जिससे इन यूनिट्स की प्रगति की अधिक सटीक रूप से जांच हो सकेगी। जबकि विविधीकरण यूनिट्स के लिए टर्नओवर के आधार पर प्रोडक्शन क्षमता का आकलन किया जाएगा।

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आपको बता दें, पहले की पॉलिसी में में इस प्रकार का स्पष्ट विभाजन नहीं था, जिससे निवेशकों और बिजनेस संचालकों को अक्सर दुविधा जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता था। वैसे इस बात सरकार ने छोटे और मध्यम निवेशकों के लिए भी राहत प्रदान की है।

छोटे और मध्यम निवेशकों को राहत

अब यूपी में ₹10 करोड़ तक के पूंजी निवेश प्रस्तावों पर रियायतों का अनुमोदन (अप्रुवल) राज्य स्तरीय कमेटी द्वारा किया जाएगा। इसके पहले यह सीमा ₹50 करोड़ थी, जिसे अब ₹10 करोड़ तक सीमित कर दी गई है। जाहिर है इससे छोटे और मध्यम उद्योगों को तेजी से अप्रुवल प्राप्त होगा। वहीं ₹10 करोड़ से अधिक के निवेश प्रस्तावों के अप्रुवल के लिए शासकीय स्वीकृति समिति द्वारा फैसला लिया जाएगा।

टेक्सटाइल इंडस्ट्री के प्रस्तावों पर तेजी से फैसला लेने के मकसद के साथ कमेटी का पुनर्गठन किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, इस कमेटी में परिक्षेत्रीय सहायक आयुक्त अध्यक्ष के रूप में शामिल होंगे। इसके अतिरिक्त, सहायक निदेशक रेशम विकास, निदेशक आईआईएचटी वाराणसी और बुनकर सेवा केंद्र के प्रभारी अधिकारी को कमेटी से हटा दिया गया है। माना जा रहा है इन बदलावों के चलते प्रशासनिक प्रक्रियाएं सरल और तेज होंगी।

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