Supreme Court Bar Association objects to the statue of Justice: सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में न्याय की देवी की नई प्रतिमा को लेकर विवाद खड़ा होने लगा है। जानकारी के मुताबिक़, अब इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने आपत्ति जताई है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें कहा गया कि यह बदलाव उनसे परामर्श किए बिना एकतरफा तौर पर किया गया है। बता दे, न्याय की देवी की नई प्रतिमा चीफ़ जस्टिस सीजेआई डीवीआई चंद्रचूड़ के ख़ास निर्देशों के बाद जजों की लाइब्रेरी के अंदर स्थापित किया गया था।
लेडी जस्टिस को खुली आंखों के साथ दिखाया गया
न्याय की देवी प्रतिमा जो कि पारंपरिक रूप से आंखों में काली पट्टी बंधी होती थी, उसे बदलकर नई मूर्ति में आंखों से पट्टी को हटाया गया है, साथ ही मूर्ति में उनके हाथ में तलवार की जगह भारत का संविधान दिखाई दे रहा है। लेकिन अब इसे लेकर विवाद खड़ा होने लगा है। SCBA की ओर से बीते मंगलवार को जारी प्रस्ताव में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की अध्यक्षता में इस बदलाब को लेकर आपत्ति दर्ज की गई हैं। SCBA के प्रस्ताव में कहा गया कि,
“हम न्याय प्रशासन में समान हितधारक हैं, लेकिन जब ये बदलाव प्रस्तावित किए गए, तो कभी हमारे ध्यान में नहीं लाए गए, हम इन बदलावों के पीछे के तर्क के बारे में कोई जानकारी नहीं है।”
इसके अलावा एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट भवन में जजों की लाइब्रेरी को म्यूजियम में बदले जाने पर भी आपत्ति जाहिर की।एसोसिएशन ने इस मामले में कहा कि बार के सदस्यों के लिए एक पुस्तकालय, कैफे कम लाउंज की मांग की थी क्योंकि वर्तमान कैफेटेरिया बार के सदस्यों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है। हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि पूर्व जजों के पुस्तकालय में प्रस्तावित संग्रहालय के खिलाफ हमारे द्वारा उठाई गई आपत्ति के बावजूद संग्रहालय के लिए काम शुरू हो गया है।
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गौरतलब हो, पुरानी पारंपरिक मूर्ति में आंखों में पट्टी कानून सभी के साथ एक जैसा व्यवहार, तराजू संतुलन और निष्पक्षता का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि तलवार कानून की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती थी। वही, नई प्रतिमा को औपनिवेशिक विरासत को पीछे छोड़ने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, जबकि यह संदेश भी दिया जा रहा है कि नए भारत (Supreme Court Bar Association objects to the statue of Justice) में कानून अंधा नहीं है।