Maharashtra school syllabus controversy: महाराष्ट्र में नए स्कूल पाठ्यक्रम में उठे विवादों के बीच अब सरकार ने सफाई पेश की है। सरकार की ओर से शिक्षामंत्री ने अपने बयान में कहा कि, महाराष्ट्र राज्य पाठ्यक्रम ढांचे की तरफ से दी गई सभी सिफ़ारिश को सरकार नही मानने जा रही है।
दरअसल महाराष्ट्र स्कूल पाठ्यक्रम का एक ड्राफ्ट सार्वजनिक हुआ था, जिसमें मराठी भाषा को अनिवार्य शिक्षा से खत्म करने, मनु स्मृति की पंक्तियों को जोड़े जाने को लेकर कई लोगों ने आपत्ति दर्ज की थी, जिसे लेकर राज्य में महाराष्ट्र में शिक्षा पाठ्यक्रम को लेकर अच्छा खासा बखेड़ा खड़ा हो गया था। अब पाठ्यक्रम को लेकर बढ़ते विवाद को लेकर सरकार की ओर से सफाई पेश की गई है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार केसरकर ने स्पष्ट किया कि इस कदम को सार्वजनिक किए जाने से पहले सरकारी या संचालन समिति की मंजूरी नहीं मिली थी।
मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए महाराष्ट्र सरकार में शिक्षा मंत्री केसकर ने मराठी को अनिवार्य भाषा के रूप से बाहर करने पर खेद व्यक्त किया। उन्होंने कहा,
‘ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना मसौदा सार्वजनिक कर दिया गया था।’
शिक्षा मंत्री की सफाई के बाद SCERT ने भी एक बयान दिया
मंत्री के स्पष्टीकरण के बाद, SCERT ने सोमवार देर रात एक बयान जारी किया। SCERT ने बयान में कहा कि कक्षा 1 से 10 तक मराठी और अंग्रेजी भाषा अनिवार्य होगी।
SCERT की ओर से कहा गया कि , कक्षा 6 से हिंदी, संस्कृत और अन्य भारतीय और विदेशी भाषाओं की पेशकश की जा (Maharashtra school syllabus controversy) रही है, जबकि कक्षाएं 11वीं और 12वीं के छात्रों को दो भाषाएं सीखनी होंगी- एक भारतीय और दूसरी विदेशी।
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गौरतलब हो, SCF के ‘मूल्य शिक्षा और स्वभाव’ पर एक अध्याय को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था, जिसमे मनु स्मृति के एक श्लोक को लेकर कुछ लोगों ने आरोप लगाते हुए कहा था कि, यह सामाजिक व्यवस्था का वर्णन करने वाला एक प्राचीन हिंदू कानूनी पाठ है। पाठ्यक्रम में इस श्लोक को लेकर विरोध दर्ज किया गया था, जिसके बाद अब महाराष्ट्र सरकार को कहना पड़ा कि वह महाराष्ट्र राज्य पाठ्यक्रम ढांचे की सभी सिफारिशों के साथ आगे नहीं बढ़ेगी।
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