संपादक, न्यूज़NORTH
SEBI Ask BSE To Pay Regulatory Fees?: सोमवार को नए हफ्ते का कारोबारी सत्र शुरू होते ही BSE (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) को एक बड़ा झटका लगा। बीएसई का स्टॉक लगभग 18-19 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज करते हुए, ₹2,612 के आँकड़े तक पहुँच गया। बताया जा रहा है कि स्टॉक लिस्टिंग के बाद से अब तक यह एक दिन में दर्ज की गई सबसे बड़ी गिरावट है। लेकिन इसके पीछे SEBI के एक बड़े कदम को कारण बताया जा रहा है।
जी हाँ! देश में शेयर बाजार नियामक सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने बीएसई को ‘ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट’ की नोशनल वैल्यू के आधार पर गणना करते हुए वार्षिक ट्रेड शुल्क पर रेगुलेटरी फीस देने के लिए कहा है। इस आदेश के बाद से ही बीएसई में स्टॉक्स में गिरावट देखनें को मिलने लगी है।
SEBI & BSE Row
मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आ रही जानकारी के मुताबिक सेबी ने बीएसई को डिफरेंशियल फीस के तौर पर लगभग ₹165 करोड का भुगतान करने के आदेश दिए हैं। माँगी गई इस कुल पूंजी में से ₹69 करोड वित्त वर्ष 2007 से लेकर वित्त वर्ष 2023 तक के लिए हैं, जबकि शेष ₹96 करोड वित्त वर्ष 2024 के लिए हैं।
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असल में इसके पहले बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज यानी बीएसई अपने वार्षिक राजस्व (एनुअल टर्नओवर) की गणना प्रीमियम वैल्यू के ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर करती थी। लेकिन अब सेबी ने बीएसई को ऑप्शंस कॉन्ट्रेक्ट्स के लिए टर्नओवर की दूसरी गणना (कैलकुलेशन) के तहत रेगुलेटरी फीस देने के लिए कहा है। जाहिर है इससे बीएसई पर अतिरिक्त भारी बोझ पड़ने की संभावना है और शायद यही वजह है कि इसका असर बीएसई के स्टॉक्स पर भी देखनें को मिलने लगा है।
क्या होता है नोशनल वैल्यू?
जैसा हमनें आपको पहले ही बताया SEBI कि ओर से बीएसई को ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए नोशनल वैल्यू पर सालाना टर्नओवर कैलकुलेट करके फिर रेगुलेटरी फीस अदा करने के निर्देश दिए गए हैं। लेकिन आपमें से शायद बहुतों के मन में यह सवाल होगा कि आखिर नोशनल वैल्यू होता क्या है?
असल में नोशनल वैल्यू किसी अंडरलाइंग एसेट के मार्केट प्राइस को कॉन्ट्रेक्ट की राशि से गुणा करके निकाला जाता है। उदाहरण के लिए अगर कोई ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट ₹40 भाव वाले किसी स्टॉक के 100 शेयरों का है तो इसकी नोशनल वैल्यू ₹4,000 होगी। अंतर यह है कि अब तक बीएसई संबंधित फीस की गणना ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट के प्रीमियम वैल्यू के आधार पर करती चली आई है।
ऐसे में SEBI के आदेश के मुताबिक, अब इस नई गणना करने पर जो अंतर निकलकर आएगा, उसका भुगतन ब्याज के साथ करना होगा। बताया जा रहा है कि यह आँकड़ा लगभग ₹165 करोड़ का बनता है।