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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, 6 महीनें बाद भी स्वतः रद्द नहीं होंगे स्टे ऑर्डर

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, 6 महीनें बाद भी स्वतः रद्द नहीं होंगे स्टे ऑर्डर

  • सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में सुनाये हुये अपने ही एक फैसले को बदला.
  • पुनर्विचार की मांग वाली इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की याचिका पर नया फैसला सुनाया.
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Big decision of Supreme Court regarding stay order : सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही आदेश को बदलते हुए एक नया आदेश जारी किया है, सुप्रीम कोर्ट के नए आदेशों के मुताबिक ‘अब किसी कोर्ट की तरफ से आपराधिक और दीवानी मामलों में दिए गए स्टे ऑर्डर अपने आप छह महीने में खत्म नहीं होंगे।’

दरअसल पूर्व में एक केस के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में एक फैसला सुनाते हुए तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि ‘उच्च न्यायालयों सहित अदालतों द्वारा दिए गए स्थगन के अंतरिम आदेश, जब तक कि उन्हें विशेष रूप से बढ़ाया नहीं जाता, खुद ब खुद रद्द हो जाएगा। इसका मतलब कोई भी मुकदमा या कार्यवाही छह महीने के बाद स्थगित नहीं रह सकती।’

इसी फैसले को बदलते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अब गुरुवार (29 फरवरी) को दिए एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी भी मामले में अदालत से जारी स्थगन आदेश (स्टे आर्डर) छह महीने में स्वत: समाप्त नहीं होगा।

2018 में एक केस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने लिया था फैसला

2018 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों वाली पीठ ने ‘एशियन रिसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड’ के निदेशक बनाम सीबीआई के मामले में अपने फैसले में न्यायालयों सहित अदालतों द्वारा दिए गए स्थगन के अंतरिम आदेश, जब तक कि उन्हें विशेष रूप से बढ़ाया नहीं जाता, खुद ब खुद रद्द हो जाएगा फैसला सुनाया था। इसी फैसले को पलटते हुए प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, एएस ओका, जेबी पार्डीवाला, पंकज मित्तल और मनोज मिश्रा की पीठ ने  ‘एशियन रिसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड’ के निदेशक बनाम सीबीआइ फैसले पर पुनर्विचार की मांग वाली इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की याचिका पर एक नया फैसला सुनाया है।

नए फैसले के अनुसार सभी तरह के दीवानी और फौजदारी मामलों में दिए गए स्थगन आदेशों को छह महीने तक सीमित रखने और छह महीने के बाद स्थगन आदेश स्वत: समाप्त हो (Big decision of Supreme Court regarding stay order) जाने का एक सामान्य (जेनरिक) आदेश नहीं दिया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट के जजों की पीठ ने इस नए फैसले के पीछे तथ्य देते हुए कहा है, संवैधानिक अदालतों को अन्य अदालतों में लंबित मामलों के निपटारे की समय सीमा नहीं तय करनी चाहिए। आउट आफ टर्न प्राथमिकता का मामला भी संबंधित अदालत पर छोड़ना चाहिए क्योंकि जमीनी स्तर के मुद्दे केवल संबंधित अदालत को ही मालूम होते हैं। ऐसे में यह फैसला लेने का अधिकार स्थानीय या संबंधित अदालत के पास ही होना चाहिए।

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गौरतलब हो, सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों ने पूर्व में स्टे ऑर्डर का समय समाप्त होने वाला फैसला यह सोचकर दिया था कि इससे मुकदमों और ट्रायल में होने वाली देरी घटेगी।

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