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ISRO ने ‘वैक्यूम चैम्बर’ में किया NISAR सैटेलाइट का सफल ‘परीक्षण’, जानें प्रक्रिया!

ISRO ने ‘वैक्यूम चैम्बर’ में किया NISAR सैटेलाइट का सफल ‘परीक्षण’, जानें प्रक्रिया!

  • नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) सैटेलाइट ने इसरो की फैसिलिटी में 21 दिवसीय थर्मल टेस्ट को सफलतापूर्वक पास कर लिया है।
  • यह परीक्षण इसरो सैटेलाइट इंटीग्रेशन एंड टेस्ट एस्टैब्लिशमेंट (ISITE) के एक वैक्यूम चैंबर में किया गया।
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ISRO Successfully Conducts Thermal Test of NISAR Satellite: भारत और अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसियों के संयुक्त मिशन वाले नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) सैटेलाइट ने इसरो के बेंगलुरु स्थित कॉम्पैक्ट एंटीना टेस्ट फैसिलिटी में लगभग 21 दिवसीय थर्मल टेस्ट को सफलतापूर्वक पास कर लिया है।

असल में इस परीक्षण का मुख्य मकसद उन अभी संभावित ‘तापमानों’ में सैटेलाइट के प्रदर्शन का आँकलन करना था, जिसका सामना इसे अंतरिक्ष यात्रा के दौरान करना पड़ सकता है। और खास ये रहा कि इस परीक्षण के दौरान सैटेलाइट सभी पैमानों पर खरा उतरा।

NASA ISRO NISAR Test: कैसे हुआ परीक्षण?

NISAR का यह परीक्षण 19 अक्टूबर से 13 नवंबर के बीच इसरो सैटेलाइट इंटीग्रेशन एंड टेस्ट एस्टैब्लिशमेंट (ISITE) के एक वैक्यूम चैंबर में किया गया। यह फैसिलिटी असल में बेंगलुरु स्थित यूआर राव सैटेलाइट सेंटर (URSC) का ही एक हिस्सा है। इसरो URSC में ही अपने स्पेसक्राफ्ट को असेंबल करने से लेकर, लॉन्च से पहले उसका परीक्षण करने तक का काम करता है।

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तीन सप्ताह की परीक्षण अवधि के दौरान नासा और इसरो दोनों के प्रतिनिधियों ने आंशिक रूप से गोल्डन रंग के थर्मल कवर से ढके NISAR सैटेलाइट थर्मल सिस्टम के साथ-साथ दो रडार पेलोड के प्रदर्शन पर भी नजर बनाए रखी।

टेस्टिंग के दौरान वैक्यूम चैम्बर के अंदर ‘अंतरिक्ष वातावरण’ के अनुरूप माहौल पैदा करने के लिए दबाव को वायुमंडलीय दबाव से कुछ अंश तक कम कर दिया गया था। दिलचस्प रूप से टेस्टिंग के दौरान अंतरिक्ष यान ने बेहद ठंडे (लगभग -10°C) और गर्म (लगभग 50°C) तक के तापमान का सामना किया। असल में यह वही तापमान सीमायें है, जिसका सामना सैटेलाइट को परिक्रमा करते हुए पृथ्वी के सापेक्ष रात से दिन की ओर बढ़ने के दौरान करना पड़ता है।

इसके पहले नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) की 20 दिवसीय टेस्टिंग के दौरान इंजीनियरों ने यह भी पाया था कि दो रडार सिस्टम एंटेना असल में रेडियो सिग्नल आवश्यकताओं को पूरा कर पा रहे हैं। उस परीक्षण कक्ष की दीवारों, फर्श और छत पर ‘नीले स्पाइक्स फोम’ का भी इस्तेमाल किया गया, जिसने रेडियो तरंगों को कमरे के चारों ओर उछलने और माप के दौरान हस्तक्षेप करने से रोकने का काम किया।

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Image Credit: NASA

इस परीक्षण के बाद ही थर्मल वैक्यूम चैम्बर में 21 दिनों तक अगला परीक्षण किया गया, जिससे यह पता चला कि सैटेलाइट अंतरिक्ष के अत्यधिक तापमान और निर्वात का सामना भी कर सकता है।

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आगे की प्रक्रिया?

एक बार सैटेलाइट का परीक्षण पूरा हो जाने के बाद, NISAR को ट्रक के जरिए लगभग 350 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा हाई एल्टीट्यूड रेंज के ‘सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र‘ में स्थानांतरित कर दिया जाएगा, जहाँ इसे इसरो के जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च वाहन  (GLSV) मार्क II रॉकेट के ऊपर स्थापित किया जाएगा, और लो-अर्थ ऑर्बिट में भेजा जाएगा।

NISAR के बारे में

निसार (NISAR) असल में पृथ्वी-अवलोकन मिशन को लेकर भारत के इसरो (ISRO) और अमेरिका के नासा (NASA) के बीच पहले संयुक्त अंतरिक्ष-हार्डवेयर सहयोग का प्रतीक है। इसे अगले साल यानी 2024 की शुरुआत में लॉन्च किया जाना है।

एक बार निर्धारित ऑर्बिट में स्थापित किए जाने के बाद, NISAR सैटेलाइट हर 12 दिनों में दो बार पृथ्वी की लगभग सभी भूमि और बर्फ को स्कैन करेगा साथ ही सतहों की गति को भी मॉनिटर कर सकेगा। इसके जरिए वनों, आर्द्रभूमियों और कृषि भूमि आदि की ट्रैकिंग को लेकर मदद मिलेगी।

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