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पिछले 3 महीनों में ‘भारत सरकार’ ने ई-कॉमर्स कंपनियों को भेजे क़रीब ‘148 नोटिस’ – रिपोर्ट

पिछले 3 महीनों में ‘भारत सरकार’ ने ई-कॉमर्स कंपनियों को भेजे क़रीब ‘148 नोटिस’ – रिपोर्ट

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Govt Sends 148 Notices To E-Commerce Firms: अगर आपसे कहा जाए कि बीते 3 महीनों में भारत सरकार देश में अपना संचालन करने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों को क़रीब 148 क़ानूनी नोटिस भेज चुकी है, तो आप सबसे पहले पूछेंगें की ‘आख़िर क्यों’?

तो बात कुछ ऐसी है कि एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत की केंद्र सरकार पिछले 3 महीनों में प्रोडक्ट्स पर ‘Country of Origin‘ को डिस्प्ले करने के अनिवार्य नियम का पालन ना करने को लेकर ई-कॉमर्स कंपनियों को क़रीब 148 क़ानूनी नोटिस जारी कर चुकी है।

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148 Notices – E-Commerce vs Govt of India?

आपको याद होगा कि जुलाई 2020 में चीन के साथ सीमा पर हुई झड़पों के बाद, दिल्ली हाईकोर्ट ने ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर किसी प्रोडक्ट की मैन्युफ़ैक्चरिंग की जगह यानि ‘Country of Origin’ को डिस्प्ले करने संबंधित याचिका को लेकर अमेज़न (Amazon) और फ्लिपकार्ट (Flipkart) को नोटिस भेजा था।

इसके बाद Consumer Protection (Ecommerce) Rules, 2020 के तहत ‘कंट्री ऑफ़ ओरिजिन (Country of Origin)’ संबंधित नियम को भी लिखित में मान्यता दी गई, जिसकी अधिसूचना 23 जुलाई को जारी हुई थी।

लेकिन अब बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से यह सामने आया है कि बीते 3 महीनों में तमाम ई-कॉमर्स कंपनियों को भेजे गए क़रीब 148 नोटिसों में से 56 में अपराध को स्वीकार करते हुए लगभग ₹34 लाख के जुर्माने की राशि प्राप्त की गई है।

साथ ही अधिकारियों द्वारा यह भी कहा गया कि सभी ई-कॉमर्स कंपनियों को अपनी वेबसाइट पर लिस्ट किए गए प्रोडक्ट की बुनियादी जानकारी के साथ ही साथ उसके ‘कंट्री ऑफ़ ओरिजिन’ की डिटेल भी डिस्प्ले करनी अनिवार्य है।

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बता दें लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट के अनुसार, इस तरह के हर एक उल्लंघन पर ₹1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

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रिपोर्ट के अनुसार अधिकारियों ने साफ़ तौर पर कहा कि ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा उल्लंघन करने पर सबसे पहले उन्हें मामले पर स्पष्टता देने का मौक़ा दिया जाता है और पूछा जाता है कि कोई उस प्रोडक्ट संबंधित जानकारी को ऑनलाइन कहाँ पा सकता है?

वैसे कुछ मौजूदा प्रोडक्ट लिस्टिंग नियम जैसे लीगल मेट्रोलॉजी (पैकेज्ड कमोडिटीज) रूल्स, 2011 और जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स ऑफ गुड्स रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट, 1999 आदि में पहले से ही ‘कंट्री ऑफ़ ओरिजिन’ को बताने की आवश्यकता होती है।

वहीं उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) भी बीते क़रीब 2 सालों से एक ऐसी व्यापक नीति तैयार करने पर काम कर रहा है, जिससे न केवल देश में ई-कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म को बढ़ावा दिया जा सके, बल्कि इस क्षेत्र में ट्रेडर्स, प्लेटफ़ॉर्म और ग्राहकों के बीच आने वाली समस्याओं या कहें तो चुनौतियों का भी समाधान तलाशा जा सके।

दिलचस्प ये है कि देश के कई ट्रेडर्स भी पिछले कुछ सालों से सरकार से इस बात का अनुरोध कर चुके हैं कि ई-कॉमर्स कंपनियों पर प्लेटफॉर्म पर बेंचे जाने वाले हर एक प्रोडक्ट पर ‘कंट्री ऑफ़ ओरिजिन’ को डिस्प्ले करने के लिए कहा जाए।

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