संपादक, न्यूज़NORTH
अपने एक ऐतिहासिक फैसले में RBI द्वारा करीब दो साल पहले क्रिप्टोकरेंसी पर लगाए गये प्रतिबंध को हटाते हुए, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को एक आदेश जारी किया था।
शीर्ष अदालत ने केंद्रीय बैंक की 2018 में आई एक अधिसूचना के खिलाफ़ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फ़ैसला सुनाया था। और अब ऐसी खबर है कि RBI इस निर्णय पर कोर्ट से पुर्नार्विचार की मांग कर सकता है, क्यूंकि बैंक का ऐसा दावा है कि क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध हटाने से देश की बैंकिंग प्रणाली के लिए थोड़ा ख़तरा बढ़ सकता है।
आपको बता दें कि अप्रैल 2018 में RBI ने अपनी संस्थाओं को निर्देशित किया था कि वे वर्चुअल करेंसी में लेनदेन न करें और न ही इसका इस्तेमाल करने वाले व्यवसायों या व्यक्तियों को सेवाएं प्रदान करें।
साथ ही RBI ने वर्चुअल करेंसी के उपयोगकर्ताओं और व्यापारियों को चेतावनी देते हुए एक अधिसूचना जारी करते हुए कहा था कि इसके इस्तेमाल आदि को ‘पोंजी स्कीम’ माना जा सकता है।
इस प्रतिबन्ध के बाद से देश में संपन्न क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंजों को काफी नुकसान हुआ, जो हर महीने 300,000 नए ग्राहकों को जोड़ने का दावा कर रहे थे। यहाँ तक कि इसके चलते कई क्रिप्टोकरेंसी प्लेटफ़ॉर्मों को देश से बाहर जाना पड़ा और सिंगापुर जैसी जगहों में शरण लेनी पड़ी।
लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इससे पहले वह कंपनियां वापस लौटने का मन बनातीं, इससे पहले ही RBI ने यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी घर वापसी की राह इतनी आसान नहीं होने देगा। दरसल देश की सबसे बड़ी बैंकिंग इकाई को डर है कि वर्चुअल करेंसी देश की बैंकिंग प्रणाली को संकट में डाल देंगी। हालांकि वह अदालत में इस दावे का समर्थन करने वाले सबूतों को पेश करने में विफल साबित हुआ।
लेकिन सवाल उठता है कि भला RBI वर्चुअल करेंसी पर प्रतिबंध का इतना समर्थन क्यूँ कर रहा है? कहीं RBI को यह डर तो नहीं है कि ऐसी प्लेटफ़ॉर्मो पर वह कोई सीधा कंट्रोल नहीं कर सकता और जिससे देश की आर्थिक प्रणाली के लिए खतरा पैदा हो सकता है।
दरसल RBI ही नहीं बल्कि दुनिया भर की अन्य संस्थाएं भी इसी तरह की आशंकाओं की शिकार हैं, क्योंकि वर्चुअल करेंसी में लेनदेन की गोपनीयता मौजूदा स्थापित बैंकिंग प्रणालियों के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है। इसके अलावा इन मुद्राओं का उपयोग गैर-कानूनी मकसदों के लिए भी किया जा सकता है।
RBI ने कोर्ट में भी यह स्पष्ट किया कि जब उसने बैंकों पर क्रिप्टोकरेंसी के लेन-देन पर प्रतिबंध लगा दिया था, तो इसने किसी भी करेंसी को प्रतिबंधित नहीं किया गया था। लेकिन इतना जरुर है कि इसके परिणामस्वरूप कई व्यवसायों और स्टार्टअप द्वारा इसके उपयोग को अदालत में चुनौती दी गई थी।
इस बीच कोर्ट में यह तर्क भी दिया गया कि क्रिप्टोकरेंसी में किसी प्रकार से पैसों का नहीं बल्कि सामान का आदान-प्रदान होता है। और इसके अनुसार RBI के ऐसे लेनदेन को कंट्रोल करने के कोई भी अधिकार नहीं हैं।
वहीँ इन सब के बाद अदालत ने तकनीकी कानूनी आपत्तियों को खारिज करते हुए यह पाया कि वर्चुअल करेंसी के चलते वित्तीय संस्थाओं को किसी भी तरह की कोई क्षति का लक्षण नहीं दिखाई देता है। और इसलिए अदालत ने यह फ़ैसला दिया।
हालाँकि भले ही अदालत की यह कार्यवाई RBI के पक्ष में नहीं गई थी, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि अगर RBI कोर्ट में पुर्नार्विचार के दौरान कोई लिखित और ठोस सबूत पेश कर पाए तो शायद क्रिप्टोकरेंसी पर लगाया गया RBI का प्रतिबन्ध बरक़रार रख सकता है। लेकिन इससे पहले देश में क्रिप्टोकरेंसी की संभावनाओं पर कुछ भी कहना शायद उचित न हो।