संपादक, न्यूज़NORTH
आज के दौर में जब लोग अपने मोबाइल फ़ोन से एक मिनट के लिए भी दूर नहीं रह पाते ऐसे में फ्लाइट में अक्सर अपने फ़ोन को स्विच ऑफ करना किसी को पसंद नहीं होता। पर क्या करें घरेलु से लेकर अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का यही हाल है।
ऐसे में घरेलु उड़ानों में तो और भी मुश्किल होती है, क्यूंकि अक्सर कई घरेलु फ्लाइटों में मनोरंजन के लिए भी कोई विकल्प मुहैया नहीं करवाया जाता है। पर अगर हम आपसे कहें कि जल्दी ही यह सब बदलने वाला है तो आपको कैसा लगेगा?
जी हाँ! ये सच है, दरसल 29 फरवरी को उड्डयन मंत्रालय द्वारा जारी एक नई अधिसूचना के अनुसार, अब पायलट की अनुमति से यात्री फ्लाइट में भी वाई-फाई के जरिये इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकेंगें।
यह ऑनबोर्ड वाई-फाई विभिन्न डिवाइसों जैसे मोबाइल फोन, टैबलेट, स्मार्ट वॉच, किंडल या ई-रीडर का समर्थन करता नज़र आएगा। हालाँकि इतना जरुर है कि इस सुविधा की पेशकश करने वाले विमानों को महानिदेशक के प्रमाणीकरण की जरूरत होगी और एक पूर्व निर्धारित प्रकिया से होकर गुजरना पड़ेगा।
असल में इस नई अधिसूचना में यह कहा गया;
“पायलट-इन-कमांड अब यात्रियों को लैपटॉप, स्मार्टफोन, टैबलेट, स्मार्टवॉच, ई-रीडर या पॉइंट ऑफ़ सेल डिवाइसों को फ़्लाइट मोड में विमान के अन्दर वाई-फाई के जरिये इंटरनेट सेवाओं का उपयोग करने की अनुमति दे सकता है।”
“लेकिन इतना जरुर है कि महानिदेशक इस संबंध में निर्दिष्ट प्रक्रियाओं के अनुसार ही इस ऑन-बोर्ड वाई-फाई के जरिये इंटरनेट के उपयोग को प्रमाणित करेंगे।”
आपको बता दें इस नए नियम के अनुसार, विमान के सभी बाहरी दरवाजे बंद हो जाने पर ही उसको ‘इन-फ्लाइट’ स्थिति मानी जाती है। और इस अधिसूचना में यह भी साफ किया गया है कि ख़राब विजिबिलिटी के हालातों में इंटरनेट के उपयोग की अनुमति नहीं दी जाएगी।
बता दें 2018 में भारतीय दूरसंचार नियामक की एक सिफारिश में उड़ानों में इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए ‘Flight and Maritime Connectivity Rules’ के तहत इन-फ्लाइट कनेक्टिविटी सुविधा देने की मांग की गई थी। जिसके बाद अगस्त 2019 में एक संशोधन में इस तरह की सुविधा का उल्लेख किया गया। हालांकि इतना स्पष्ट कर दें कि अभी भी उड़ानों के अंदर सेलुलर नेटवर्क के उपयोग की अनुमति नहीं है।
चलिए इस विषय में आपको थोड़ा बारीकी तक ले चलते हैं, दरसल उड़ानों के दौरान इंटरनेट कनेक्टिविटी मुख्यतः दो स्रोतों, मोबाइल/सेल टावरों और सैटलाइटों से मिलती है। विमान निकटतम ट्रांसमीटर से जुड़ता है और यात्रियों को इंटरनेट का उपयोग करने की अनुमति देता है।
लेकिन जब विमान किसी समुद्र के ऊपर से गुजरता है तो ऐसे में वह ट्रांसमीटर से कनेक्ट नहीं हो सकता, और इसलिए ऐसे में सैटलाइट मदद करती है। दरसल जमीनी स्टेशनों से जुड़ा हुआ निकटतम तौर पर परिक्रमा कर रहा सैटलाइट, विमान को इंटरनेट कनेक्शन प्रदान करता है।
लेकिन कहीं आप यह तो नहीं समझ रहें कि विमानों में दी जाने वाली यह आगामी इंटरनेट सुविधा आपको मुफ़्त में दी जाएगी? दरसल ऐसा बिल्कुल नहीं है, इस सुविधा का असर आपकी जेब में भी पड़ेगा।
वैसे इस पैसे का कारण भी है, क्यूंकि इस सुविधा की पेशकश करने के लिए विमानों में जरूरी बदलाव भी करने होंगें। इसमें प्रति विमान के लिहाज़ से लगभग दो से चार हफ़्तों का समय तक लग सकता है, जिस दौरान इन विमानों को हैंगर में ही रखा जाएगा। दरसल अटकलें यह हैं कि यात्रियों को विमानों में उड़ान के दौरान 30 मिनट के इंटरनेट उपयोग के लिए करीब 500 रूपये से 1000 रूपये (विमानों किराये का लगभग 20-30%) देना पड़ सकता है।
लेकिन इतना जरुर है कि इस नई सुविधा का स्वागत होना चाहिए, क्यूंकि बहुत से यात्रियों की अक्सर यह माँग रही है और हो सकता है कि इससे फ़िलहाल संघर्ष कर रहे भारतीय उड्डयन उद्योग को भी थोड़ी मदद मिले।
इस बीच एयरलाइनों को IFMC लाइसेंस के लिए दस साल तक सालाना रूप से 1 रूपये का भुगतान करना होगा। वहीँ स्पेक्ट्रम शुल्क मोटे तौर पर इंटरनेट कनेक्टिविटी की मांग करने वाले यात्रियों पर निर्भर करेगा। इसके अतिरिक्त इन सेवाओं से मिलने वाले राजस्व से ही लाइसेंस धारक के भुगतान आँकड़े का निर्धारण किया जाएगा।
दिलचस्प रूप से भारत असल में उत्तर कोरिया के बाद दूसरा ऐसा देश है जिसने अब तक इन-फ्लाइट इंटरनेट उपयोग पर प्रतिबंध लगाया हुआ था। यहाँ तक कि भारतीय विमानों के साथ ही साथ, भारत के सीमा क्षेत्र में प्रवेश करने वाली विदेशी उड़ानों को भी अपनी इ-फ्लाइट वाई-फाई सुविधा बंद करनी पड़ती है।