आज के समय मे रोज़ टेक के क्षेत्र में नए नए आविष्कार होते रहते है और गूगल नेहाल में ही ये कहा है कि वो स्किन टोन को मापने के लिए नई टेक्नोलॉजी को विकशित कर रहे है जिससे कि और सटीक तरीके से स्किन के कलर की पहचान की जा सके। अल्फाबेट के Google ने इस सप्ताह रॉयटर्स को बताया कि यह त्वचा की टोन को classify करने के लिए एक नई टेक्नोलॉजी को विकशित कर रहा है। जो कि प्रौद्योगिकी शोधकर्ताओं और त्वचा विशेषज्ञों के बढ़ते कोरस का कहना है कि यह आकलन करने के लिए पर्याप्त नही है और यह प्रोडक्ट अलग अलग रंग वाले लोगो के साथ पक्ष पात करता है।
यह सब इस लिए हो रहा है क्योंकि यूरोपीय देशों में खाश कर अमेरिका में काले रंग के लोगो के साथ भेद भाव वाले मुद्दे होते रहे है और वहाँ के लोगो मे अक्सर गोरे और काले लोगो रंग को लेकर काफी विवाद होता है। more exclusive for UK players
यह मुद्दा छह-रंग के पैमाने का है जिसे फिट्ज़पैट्रिक स्किन टाइप (FST) के रूप में जाना जाता है, और इसके द्वारा ही स्किन टोन को विभाजित किया जाता है। और इसके त्वचा विशेषज्ञ 1970 के दशक से उपयोग कर रहे हैं। टेक कंपनियां अब लोगों को वर्गीकृत करने और यह मापने के लिए इस पर भरोसा करती हैं कि क्या face recognition system और smart watch heart rate सेंसर जैसे उत्पाद त्वचा के सभी टोन के साथ समान रूप से प्रदर्शन करते हैं या नही।
क्या है गूगल की स्किन टोन measurement टेक्नोलॉजी
वैसे तो गूगल के पास पहले से ही स्किन कलर को मापने की टेक्नोलॉजी मौजूद है लेकिन उसमे ये उन पुराने पैमानों का इस्तेमाल कर रहे है जिसको 1970 के दशक में ईजाद किया गया था। लेकिन अब गूगल अपना खुद का स्किन टोन measurement टेक्नोलॉजी को बनाने के ऊपर काम कर रहा है। ताकि वो अपने AI को और भी बेहतर कर सके और इसकी मदद से उन्हें हर स्किन कलर के व्यक्ति के लिए बेहतर products को बनाने में भी मदद मिलेगी। लेकिन फिलहाल यह development phase में ही है।
क्यो है इस टेक्नोलॉजी को लेकर विवाद
आलोचकों का कहना है कि एफएसटी, जिसमें “सफेद” त्वचा के लिए चार श्रेणियां शामिल है और “काले” और “भूरे रंग के लिए एक-एक” श्रेणी ही शामिल की गई हैं, और यह dark रंग के लोगों के बीच विविधता की उपेक्षा करता है। US डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी के शोधकर्ताओं ने पिछले साल अक्टूबर में एक संघीय प्रौद्योगिकी मानकों के सम्मेलन के दौरान, चेहरे की पहचान के मूल्यांकन के लिए एफएसटी को छोड़ने की सिफारिश की क्योंकि यह विविध आबादी में रंग सीमा का खराब रूप से पारदर्शित करता है। more exclusive for UK players
वही एफएसटी के बारे में रॉयटर्स के सवालों के जवाब में, गूगल चुपचाप इस टेक्नोलॉजी के ऊपर अध्यन कर रहा है ताकि स्किन टोन को मापने के लिए बेहतर measurement को तैयार कर सके।
कंपनी ने कहा कि हम वैकल्पिक, अधिक समावेशी, उपायों पर काम कर रहे हैं जो हमारे उत्पादों के विकास में उपयोगी हो सके। और वैज्ञानिक और चिकित्सा विशेषज्ञों के साथ-साथ रंग के समुदायों के साथ काम करने वाले समूहों का भी सहयोग करेंगे,” लेकिन कंपनी ने अधिक जानकारी देने से इनकार कर दिया।
इस टेक्नोलॉजी के विकशित हो जाने से कैसे फायदा होगा।
गूगल का कहना है कि अगर हम बेहतर तौर से स्किन टोन को measure कर पाए तो इससे हमें heart rate sensor को improve कर के में काफी मदद मिलेगी और भी ज्यादा accurate real time data भी मिल पायेगा और हम अपने camera टेक्नोलॉजी को भी बेहतर कर सकते ताकि स्किन का कलर और भी बेहतर रूप से निकल कर आएगा।
इतना ही नही बल्कि इसकी मदद से AI के data को सुधारने में भी मदद मिलेगी और face recognizing technology को और भी बेहतर और accurate बनाया जा सकेगा जिससे कि किसी भी रंग के व्यक्ति को आसानी से AI पहचान कर पायेगा।
अंत मे
गूगल हमेशा से ही नई नई टेक्नोलॉजी को लोगो के लिए लेकर आता ही रहता है और गूगल ने आज के समय मे लोगो मे जीने का तरीका ही बदल दिया है। आज के समय मे गूगल का सबसे पॉपुलर product उसका search engine है और android है जिसने की बहुत से लोगो को प्रभावित किया है और आज के समय मे गूगल का नाम हर कोई जानता है।
वही अब गूगल स्किन टोन टेक्नोलॉजी को विकशित करके अपने कैमरा software को और बेहतर करेगा तथा अपने face recognizing AI system को भी बेहतर करेगा। लेकिन यह टेक्नोलॉजी विवादों में भी है क्योंकि लोगो का कहना है यह काले रंग वालो के साथ भेद भाव है और उनके लिए केवल 2 पैमानों को ही शामिल गया है जो कि भूरा और काला रंग है।
तो दोस्तो आप लोगो को हमारी ये जानकारी कैसी लगी आप हमें जरूर बताएं और इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर करे। ताकि उनको भी इस टेक्नोलॉजी के बारे में जानकारी हो सके।