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दिल्ली में होगी अब पेड़ों की गणना? सुप्रीम कोर्ट ने दिए संकेत

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Supreme Court orders counting of trees in Delhi: दिल्ली में बिगड़ते पर्यावरण और वायु गुणवत्ता के बीच सुप्रीम कोर्ट ने राजधानी में पेड़ो की संख्या बढ़ाने में ज़ोर दिया, इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राजधानी में पेड़ो की गणना की जरूरत पर जोर भी दिया। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में वृक्ष अधिकारी द्वारा किए जाने वाले काम की निगरानी के लिए एक प्राधिकरण बनाने की वकालत की है। उक्त विचार सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय ओका और अगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान रखा।

सुप्रीम कोर्ट से बिना अनुमति के पेड़ न काटें जाएं याचिका

दरअसल पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट से बिना अनुमति के बिना किसी को भी पेड़ काटें जानें की अनुमति न हो ऐसी याचिका से संबंधित है। कोर्ट में याचिका में कहा गया कि, दिल्ली में प्रतिदिन हर घंटे 5 से अधिक पेड़ काटें जा रहें है, ऐसे में इसमें रोक लगाने के लिए संबंधित विभागों को भी बिना सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के पेड़ को काटने की अनुमति न हो ऐसी मांग की गई थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 के प्रावधानों को सख्ती से लागू कराने पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है, जैसी मुख्य बातों को लेकर जोर दिया।

प्राधिकरण बनाएं जानें के लिए विचार मांगे

सुप्रीम कोर्ट ने मामले में पैरवी करने वाले वकीलों से इस बारे में सुझाव देने के लिए कहा कि किस आधार पर प्राधिकरण का गठन किया जाना चाहिए। इसमें न केवल विशेषज्ञों की आवश्यकता है, वरन प्रक्रिया में एक संस्था को भी शामिल किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि हमारा हमेशा से मानना है कि पर्यावरण के मामलों में कठोर आदेश दिए जाने चाहिए।

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गौरतलब हो, दिल्ली की वायु गुणवत्ता ठंड के मौसम में बेहद ही खतरनाक स्तर में पहुंच जाती है, समान दिनों में भी यह कुछ ख़ास अच्छी नहीं होती। इसकी मुख्य वजहों में से एक वजह राजधानी में असामान्य रूपों से डेवलपमेंट के नाम में पेड़ो की कटाई को एक वजह माना जा सकता है, चूंकि डेवलपमेंट के लिए काटें गए पेड़ो के जगह अन्य पेड़ों को विकसित करना या पेड़ो का डायवर्जन नियम बनाया गया है, परंतु उनके ठीक से कार्यान्वयन न होना भी एक समस्या बना हुआ है। इसलिए यदि इस ओर ध्यान न दिया गया तो यह एक बड़ी समस्या बन सकता है। इसी चिंता (Supreme Court orders counting of trees in Delhi)  को सुप्रीम कोर्ट द्वारा समझा जा रहा है।

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