संपादक, न्यूज़NORTH
Spain introduces climate leave: स्पेन ने अब एक बड़ा कदम उठाते हुए, पहली बार ‘पेड क्लाइमेट लीव’ (Paid Climate Leave) की पेशकश शुरू की है। यह नई नीति विशेष रूप से उन कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है, जो जलवायु आपातकाल के दौरान जोखिम में पड़ सकते हैं। दिलचस्प रूप से सरकार ने यह कदम अक्टूबर 2024 में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद लिया गया। इस बाढ़ की आपदा ने मानों पूरे देश को हिला कर रख दिया था।
इस नई ‘क्लाइमेट लीव’ नीति के तहत, अगर आपातकालीन सेवाओं से संबंधित नियामक मौसम संबंधी चेतावनी जारी करती हैं, तो कर्मचारियों को घर पर रहने की अनुमति दी जाएगी। चार दिनों तक यह छुट्टी पूरी तरह से पेड होगी। इसके बाद अगर आपातकाल की स्थिति बनी रहती है, तो कर्मचारी अपनी कार्य अवधि को भी घटा सकते हैं। खुद स्पेन के श्रम मंत्री योलांडा डियाज़ ने इसे जलवायु आपातकाल के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता बताया। उनका कहना है कि किसी भी कर्मचारी को अपनी जान जोखिम में डालने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।
Climate Leave: सुरक्षा का अधिकार
इस नीति से कर्मचारियों को न सिर्फ राहत नहीं मिलेगी, बल्कि यह ऑफ़िसों में भी एक सुरक्षित और स्वस्थ्य माहौल बनाने की दिशा में एक बड़े कदम के तौर पर देखा जा सकता है। इतना ही नहीं बल्कि इस तरह की पॉलिसी कंपनियों को भी यह याद दिलाती रहेगी कि भविष्य में जलवायु संबंधी खतरों को हल्के में न लें।
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स्पेन की ‘क्लाइमेट लीव’ की पेशकश न केवल कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए एक नई पहल है, बल्कि यह सरकार की ग्रीन पॉलिसी के प्रति प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है। यह कदम जलवायु आपदाओं के बढ़ते खतरों को देखते हुए मानों बेहद ज़रूरी बन चुका है। शायद इस नई पॉलिसी के जरिए स्पेन शायद यह भी संदेश देना चाहता है कि आगामी संभावित जलवायु संकट से निपटने के लिए हमें न केवल पर्यावरण के स्तर पर, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी पुख्ता कदम उठाने की ज़रूरत है।
स्पेन में बाढ़ का प्रकोप
आपको शायद याद ही हो। 29 अक्टूबर 2024 को स्पेन में दशकों की सबसे भयंकर बाढ़ आई, जिसमें 224 से अधिक लोगों की मौत हो गई। सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र वालेंसिया था, जहां 216 लोगों की जान गई। यह बाढ़ इतनी अचानक और तेजी से आई कि बचाव और आपात सेवाओं को भी संभलने का समय नहीं मिला।
इस दौरान कई कंपनियों ने कर्मचारियों को काम जारी रखने के लिए मजबूर किया, बल्कि राष्ट्रीय मौसम एजेंसी ने रेड अलर्ट तक जारी किया। कंपनियों ने दावा किया कि उन्हें पर्याप्त समय पर सूचना नहीं मिली। इस घटना ने आपातकालीन प्रबंधन की खामियों को उजागर किया और इसके बाद से ही नीति में सुधारों पर विचार शुरू हुआ।
स्पेन के आर्थिक मामलों के मंत्री खुद यह कह चुके हैं कि अगर जलवायु परिवर्तन को कंट्रोल नहीं किया गया, तो इससे जुड़ी आर्थिक लागत 2050 तक दोगुनी हो सकती है। उन्होंने यह भी ऐलान किया कि बाढ़ पीड़ितों के लिए 2.3 बिलियन यूरो की सहायता राशि जारी की जाएगी।
क्या भारत जैसे देश भी लाएँगे Climate Leave?
जाहिर है स्पेन सिर्फ एकलौता डेश नहीं है, जो प्राकृतिक आपदाओं आदि का शिकार हुआ है या हो सकता है। दुनिया भर के तमाम देशों में ऐसे ख़तरे बने रहते हैं, जिनमें भारत भी शामिल है। ऐसे में देखनें वाली बात ये होगी कि क्या स्पेन की ‘पेड क्लाइमेट लीव’ जैसी पॉलिसी अन्य देशों द्वारा भी पेश की जाती है या नहीं? भारत जैसे देश में मानसून, बाढ़ और सूखे जैसी आपदाओं की संभावना बनी रहती है, इसलिए यहां भी ऐसी नीति काफी अहम साबित हो सकती है।