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आरक्षण के लिए ‘धर्म परिवर्तन’ है संविधान से साथ धोखा, सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त

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Religious Conversion For Reservation?: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम मामले को लेकर सख्त टिप्पणी करते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस निर्णय के तहत एक महिला को अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया गया। महिला ने खुद को अनुसूचित जाति का सदस्य बताते हुए सरकारी नौकरी के लिए यह प्रमाणपत्र मांगा था। लेकिन अदालत ने पाया कि महिला अभी भी ईसाई धर्म के रीति-रिवाजों को मानती है और केवल आरक्षण का लाभ लेने के लिए वह धर्म परिवर्तन कर हिंदू धर्म के साथ जुड़ी।

शीर्ष अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए, आरक्षण का फ़ायदा उठाने के ऐसे तरीक़ को संविधान और आरक्षण नीति के सामाजिक उद्देश्यों के साथ धोखाधड़ी करार दिया। सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है।

अदालत ने कहा कि धर्म परिवर्तन का मकसद अगर केवल आरक्षण का लाभ उठाना है, तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। ऐसा करना न केवल संविधान के खिलाफ है, बल्कि आरक्षण की नीति के मूल उद्देश्यों को भी कमजोर करता है।

Religious Conversion For Reservation: पूरा मामला?

इस मामले की विस्तार से बात करें तो महिला ने अदालत को बताया कि उसके पिता हिंदू और मां ईसाई धर्म से थीं। महिला ने दावा किया था कि उसकी मां ने शादी के बाद हिंदू धर्म अपना लिया था। उनका दावा था कि उसका परिवार वल्लुवन जाति से संबंधित है, जिसे अनुसूचित जाति में मान्यता प्राप्त है। महिला ने यह भी कहा कि उसके पिता और भाई के पास अनुसूचित जाति के प्रमाणपत्र थे और उसे बचपन से ही अनुसूचित जाति समुदाय का हिस्सा माना गया।

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लेकिन अदालत ने जांच में पाया कि महिला का जन्म 1990 में हुआ था और 1991 में उसका बपतिस्मा यानी एक ईसाई धार्मिक संस्कार किया गया था। इसके अलावा रिकॉर्ड से यह भी पता चला कि महिला नियमित रूप से चर्च जाती है और ईसाई धर्म का पालन करती है। साथ ही फील्ड जांच में यह सामने आया कि महिला के माता-पिता का विवाह ईसाई विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत था।अदालत ने यह भी कहा कि महिला या उसके परिवार द्वारा हिंदू धर्म में फिर से धर्म परिवर्तन का कोई प्रमाण नहीं है।

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महिला का दावा

याचिकाकर्ता महिला ने अदालत के सामने फिर से हिंदू धर्म अपनाने का दावा किया, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया। अदालत ने कहा कि धर्म परिवर्तन केवल वैध और प्रमाणित प्रक्रिया के जरिए स्वीकार किया जा सकता है। महिला ने यह नहीं दिखाया कि उसने किसी धार्मिक अनुष्ठान या सार्वजनिक घोषणा के माध्यम से ईसाई धर्म छोड़कर हिंदू धर्म अपनाया।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र केवल उन्हीं व्यक्तियों को दिया जा सकता है, जो जाति आधारित उत्पीड़न का सामना करते हैं और उस समुदाय से वाक़ई जुड़े हैं। जब कोई व्यक्ति ईसाई धर्म अपनाता है, तो वह अपनी मूल जाति का सदस्य नहीं रह सकता। और अगर वह फिर से अपने मूल धर्म में लौटता है, तो इसके लिए ठोस प्रमाण और स्वीकार्यता होनी चाहिए।

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