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Reliance की भारतीय टेलीकॉम रेगुलेटर से अपील, Starlink और Amazon के दायरे की हो समीक्षा: रिपोर्ट

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Reliance Vs Starlink: मुकेश अंबानी की Reliance हाल के दिनों में भारत में एलन मस्क की कंपनी Starlink की आगामी एंट्री को लेकर चिंतित दिखाई पड़ रही है। Reliance ने अब भारतीय टेलीकॉम रेगुलेटर, TRAI से अपील किया है कि वह एलन मस्क की Starlink और Amazon के Project Kuiper के संभावित प्रभाव और दायरे की समीक्षा (रिव्यू) की जाए। यह माँग ऐसे समय में की गई है जब देश में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के आवंटन के तरीके को लेकर Reliance और Starlink के बीच मतभेद उभर कर सामने आए हैं।

जैसा हम आपको पिछली रिपोर्ट्स में भी बता चुके हैं, कि Reliance Jio का कहना है कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी की जाए, जबकि Starlink और Amazon जैसी अन्य वैश्विक कंपनियां आवंटन प्रक्रिया का समर्थन कर रही है। रिलायंस का तर्क है कि अगर विदेशी सैटेलाइट सेवाओं को स्पेक्ट्रम आवंटन बिना बोली प्रक्रिया के किया गया, तो यह भारतीय कंपनियों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।

Reliance Vs Starlink: लिखा पत्र

और अब इस मामले में रॉयटर्स की एक हालिया रिपोर्ट में Reliance द्वारा भारतीय टेलीकॉम नियामक को लिखे एक कथित पत्र के हवाले से कुछ नए खुलासे हो सके हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, रिलायंस ने लिखा है कि कंपनी भारत में हर महीने लगभग 15 बिलियन गीगाबाइट डेटा सेवा प्रदान कर रही है। यह सेवा स्पेक्ट्रम के लिए $23 बिलियन से अधिक की नीलामी लागत के साथ उपलब्ध करवाई जा रही है।

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वहीं Starlink अपेक्षाकृत कम लागत में अपनी सैटेलाइट क्षमता के माध्यम से भारत में 18 बिलियन गीगाबाइट डेटा प्रदान कर सकता है। रिलायंस का मानना है कि यह भारतीय बाजार में एक बड़ा प्रतिस्पर्धी दबाव पैदा कर सकता है। इसलिए कंपनी की माँग है कि भारत में सैटेलाइट स्पेक्ट्रम आवंटन नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से होना चाहिए, ताकि भारतीय कंपनियों को उचित प्रतिस्पर्धा मिल सके।

सरकार Elon Musk के पक्ष में?

दिलचस्प रूप से जानकारों के मुताबिक, इस मामले में भारत सरकार फिलहाल एलन मस्क की कंपनी Starlink के मत से सहमत नजर आ रही है, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए प्रशासनिक तरीके से आवंटन का समर्थन किया है। असल में यह एक वैश्विक चलन है जिसमें नीलामी की बजाय सरकार ही निर्धारित आवंटन करती है, जिससे स्पेक्ट्रम लागत कम रहती है।

जानकारों का कहना है कि स्पेक्ट्रम नीलामी की नीति के चलते Reliance जैसे भारतीय खिलाड़ियों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बच सकेंगे। नीलामी के चलते शुरुआत में ही विदेशी कंपनियों को उच्च लागत का सामना करना पड़ सकता है, जिससे संभवतः विदेशी कंपनियों को भारतीय बाज़ार में प्रवेश करना और मौजूदा खिलाड़ियों के मुक़ाबले अपनी सेवाओं का प्रसार करने में कठिनाई हो सकती है।

इस बीच रिपोर्ट के अनुसार Reliance ने अपने पत्र में लिखा है कि नियामक को इन विशाल सैटेलाइट इंफ्रास्ट्रक्चर वाली कंपनियों जैसे Starlink और Kuiper की क्षमता का गंभीरता से अध्ययन करना चाहिए और इसकी समीक्षा करनी चाहिए।

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Reliance का डर?

आपको बता दें Starlink ने भारत में अपनी सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं के लिए सुरक्षा मंजूरी हेतु आवेदन किया है। भारत के टेलीकॉम मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के अनुसार, अगर कंपनी आवश्यक सभी शर्तें पूरी करता है, तो उसे लाइसेंस जारी किया जा सकता है।

ऐसे में अब Starlink धीरे-धीरे देश के टेलीकॉम सेक्टर में प्रवेश का रास्ता पुख्ता कर रहा है। शायद यही वजह है कि मुकेश अंबानी के Reliance Jio को भारतीय टेलीकॉम बाजार में मुफ्त डेटा प्लान आदि के चलते हासिल किए गए व्यापक उपयोगकर्ता आधार को खोने का डर है क्योंकि कई जानकारों का कहना है कि अगर Starlink भारत में अपनी सेवाओं की पेशकश करता है तो हो सकता है कि वह अन्य के मुक़ाबले कम दाम में सर्विस देने की शुरुआत करे जो जाहिर तौर पर किसी भी मौजूदा खिलाड़ी के लिए चुनौती को बढ़ा देगा।

ऐसी संभावना इसलिए भी जताई जा रही है क्योंकि हाल में ही केन्या में मस्क ने Starlink ने केवल $10 प्रति माह पर सेवाओं का आगाज किया, जबकि अमेरिका में इसकी कीमत $120 है। इससे केन्या के स्थानीय टेलीकॉम खिलाड़ियों को भारी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है और वह एक तरीक़े का दबाव महसूस करने लगे हैं। हो सकता है Reliance को भारत में भी ऐसे ही कदम का अंदेशा हो।

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