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क्विक कॉमर्स का असर ‘किराना स्टोर्स’ पर ज़्यादा, बड़े ई-कॉमर्स पर नहीं: Delhivery सीईओ

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Quick Commerce Disrupts Kirana Stores?: क्विक कॉमर्स आज के समय एक व्यापक चर्चा का विषय बन चुका है। ये तरीका परंपरागत किराना स्टोर्स पर भी असर डालने लगा है। और इस बात पर अब Delhivery के सीईओ साहिल बरुआ ने भी मोहर लगाई है। उन्होंने कंपनी की तिमाही आय रिपोर्ट में यह बात कही है कि क्विक कॉमर्स असल मायनों में किराना स्टोर्स को अधिक प्रभावित कर रहा है, जबकि बड़े ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर इसका उतना असर नहीं दिखता है।

उन्होंने यह भी बताया कि कैसे क्विक कॉमर्स किराना के लिए चुनौती बनकर उभर रहा है और आने वाले समय में यह परंपरागत व्यापार के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। साहिल बरुआ का कहना है कि बड़े ई-कॉमर्स और क्विक कॉमर्स के उत्पादों के प्रकार – या जिन्हें SKU भी कहा जाता है – में एक बुनियादी अंतर है।

बड़े ई-कॉमर्स प्लेटफार्म्स आमतौर पर गैर-जरूरी वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स और लंबे समय तक इस्तेमाल होने वाली चीजों पर फोकस करते हैं, जबकि क्विक कॉमर्स का जोर रोजमर्रा की चीजों जैसे किराने, ताजे फल-सब्ज़ियाँ, और घरेलू आवश्यक वस्तुओं पर अधिक है।

Quick Commerce Disrupts Kirana Stores

क्विक कॉमर्स कंपनियाँ जैसे Blinkit, Instamart और Zepto अपने वेयरहाउस को बढ़ाने में जुटी हैं। इससे ये कंपनियाँ अधिक SKU वाले उत्पाद जैसे होम फर्निशिंग, खिलौने, फैशन और अन्य दैनिक ज़रूरतों की वस्तुओं को अपने स्टॉक में जोड़ सकती हैं। इससे ग्राहकों को बड़ी वैरायटी उपलब्ध हो रही है। बरुआ का कहना है कि अगर क्विक कॉमर्स 15 मिनट डिलीवरी से चार घंटे डिलीवरी की तरफ जाता है, तो इन्हें बड़े पैमानें पर वेयरहाउस की ज़रूरत होगी और ये काफी कुछ Amazon के फुलफिलमेंट सेंटर जैसा हाल हो जाएगा।

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बरुआ का मानना है कि क्विक कॉमर्स, भले ही अपने SKU की संख्या बढ़ा ले, लेकिन बड़े ई-कॉमर्स प्लेटफार्म्स की तरह व्यापक नेटवर्क और लॉजिस्टिक्स स्ट्रेंथ हासिल करना उसके लिए आसान नहीं होगा। इसके लिए बेहद व्यापक इंफ्रास्ट्रक्चर और नेटवर्क की ज़रूरत होती है, जो Amazon और Flipkart जैसे बड़े ई-कॉमर्स प्लेटफार्म्स के पास पहले से मौजूद है।

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किराना स्टोर्स पर बढ़ता प्रभाव

डेटम इंटेलिजेंस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 तक क्विक कॉमर्स किराना स्टोर्स से $1 बिलियन से अधिक की बिक्री हासिल कर सकता है। इसका मतलब यह है कि अधिक से अधिक ग्राहक अपने रोजमर्रा के सामान के लिए क्विक कॉमर्स का सहारा ले रहे हैं, जिससे छोटे किराना स्टोर्स पर दबाव बढ़ता जा रहा है।

दिलचस्प रूप से कुछ ही दिनों पहले अखिल भारतीय कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन (AICPDF) के आँकड़ो से संबंधित एक रिपोर्ट में भी कुछ बड़े खुलासे हुए थे। असल में AICPDF ने भारत के रिटेल बिजनेस पर क्विक कॉमर्स के प्रभाव का पहला व्यापक विश्लेषण किया है। इस अध्ययन के अनुसार, सबसे ज्यादा किराना दुकानें मेट्रो शहरों में बंद हुई हैं। देश भर के इन शहरों में अनुमान के मुताबिक करीब 17 लाख दुकानें हैं, जो हर महीने औसतन ₹5.5 लाख का बिजनेस करती हैं। और इन्हीं मेट्रो शहरों में लगभग 45% दुकानें बंद हो चुकी हैं।

वहीं इसके बाद टियर 1 शहरों में 30% और टियर 2-3 शहरों में 25% दुकानें बंद हुई हैं। टियर 1 शहरों में लगभग 12 लाख दुकानों का औसत मासिक कारोबार ₹3.5 लाख होता है, जबकि टियर 2 और निचले स्तर के शहरों में 1 करोड़ से अधिक दुकानें औसत ₹2.5 लाख का मासिक कारोबार करती हैं।

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