Supreme Court Justice Urges to Avoid Religious Rituals in Court: सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश जस्टिस अभय ओका का बयान चर्चा में है। उन्होंने यह सलाह दी है कि अदालत में वकीलों और जजों को पूजा-पाठ से बचना चाहिए। जस्टिस अभय ओका का कहना रहा कि अदालतों के कार्यक्रमों में धार्मिक रीति-रिवाजों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
असल में जस्टिस अभय ओका के मुताबिक, कानूनी जगत में जुड़े लोगों (वकीलों और जजों) को अदालतों के कार्यक्रम या किसी भी काम की शुरुआत के पहले संविधान की प्रति के सामने झुककर करनी चाहिए। जस्टिस ओका ने महाराष्ट्र के पिंपरी-चिंचवाड़ में एक नए कोर्ट परिसर के भूमि पूजन समारोह में शामिल हुए थे। इसी दौरान उन्होंने यह तमाम बातें कहीं।
Supreme Court Justice Urges to Avoid Religious Rituals in Court
हाल में प्रकाशित हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार, भूमि पूजन समारोह में शामिल हुए सुप्रीम कोर्ट जस्टिस ओका ने कहा;
“इस बार 26 नवंबर को बाबा साहब अंबेडकर द्वारा दिए गए संविधान को 75 साल पूरे हो जाएँगे। मुझे हमेशा से लगता है कि हमारे संविधान की प्रस्तावना में दो बेहद जरूरी शब्द हैं, एक धर्मनिरपेक्ष और दूसरा लोकतंत्र।”
“कुछ लोग यह ज़रूर कह सकते हैं कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब सर्व धर्म समभाव होता है, परंतु मेरा मानना है कि न्यायिक प्रणाली का मूल संविधान है।”
इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि ‘कई बार जजों को कुछ ऐसे बातें कहनी पड़ती हैं जो चुभ सकती हैं, मैं भी आज कुछ ऐसी ही बात कहने जा रहा हूँ। मेरा मानना है कि अब हमें अदालत से जुड़े कार्यक्रमों में पूजा-पाठ या दीप जलाने जैसे अनुष्ठानों को बंद करना चाहिए। इसके बजाए हमें संविधान की प्रति सामने रख कर उसके आगे झुक कर किसी भी कार्य की शुरुआत करनी चाहिए।’
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के अनुसार, इस नई परंपरा को शुरू करने की ज़रूरत है। इसके ज़रिए संविधान और उसके मूल्यों के सम्मान भी प्रदर्शित किया जा सके। दिलचस्प रूप से उन्होंने बताया कि कर्नाटक में उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान ऐसे धार्मिक अनुष्ठानों को रोकने का प्रयास किया था, लेकिन पूरी तरह से सफ़लता नहीं मिल सकी।