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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, MPs या MLAs को रिश्वतखोरी की छूट नहीं

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, MPs या MLAs को रिश्वतखोरी की छूट नहीं

  • अब MPs MLAs को घूसखोरी मामले में मुकदमे से छूट नहीं
  • सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पूर्व के निर्णय को पलटा
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No immunity for MP or MLAs for taking bribes?: भारत में सांसदों या विधायकों को संसद या विधानसभा में भाषण या वोट के बदले रिश्वत लेने के मामले में अब किसी प्रकार मुकदमे से राहत नहीं मिलेगी। असल में सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में बनी 7 न्यायधीशों वाली पीठ ने अदालत के ही एक पुराने फैसले को पलट दिया है।

सर्वोच्च अदालत के नए फैसले के तहत अब घूस या रिश्वत लेकर वोट/भाषण देने वाले माननीयों को अभियोजन से राहत नहीं मिल सकेगी। उन पर आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकेगा। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि संसदीय विशेषाधिकार के तहत रिश्वतखोरी की छूट नहीं दी जा सकती है।

No immunity for MP or MLAs for taking bribes

इस नए निर्णय के चलते, अदालत ने सांसदों-विधायकों को आपराधिक मुकदमे से मिलने वाली इस छूट पर अपनी असहमति जताई और वर्ष 1998 में दिए एक पिछले फैसले को पलट दिया। आपको बता दें, यह नया फैसला देने वाली 7 जजों की इस संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस एम एम सुंदरेश, जस्टिस पी एस नरसिम्हा, जस्टिस जेपी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल रहे।

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क्या था पहले का फैसला

असल में साल 1998 में पीवी नरसिम्हा राव के मामले में सर्वोच्च अदालत में 5 जजों की एक संविधान पीठ ने 3-2 के बहुमत से एक फैसला सुनाया था। इस फैसले के तहत देश में किसी सांसद या विधायक पर सदन में भाषण या मतदान के लिए रिश्वत लेने संबंधी आरोपों को लेकर उसपर आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था।

लेकिन आज सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा –

“संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 में माननियों के लिए घूसख़ोरी/रिश्वत से छूट का प्रावधान नहीं है। रिश्वतखोरी एक आपराधिक कृत्य है और यह किसी भी सदन में भाषण देने या वोट देने के लिए जरूरी नहीं है।”

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“पीवी नरसिम्हा राव मामले 1998 में दिए गए निर्णय की जो व्याख्या की गई है, वह संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 से मेल नहीं खाती है”

उन्होंने कहा कि सांसदो-विधायकों को मिली छूट, यह साबित करने में विफल रही है कि माननीयों को अपने विधायी कार्यों में इसकी किसी भी प्रकार कोई अनिवार्यता है। आपको बता दें, इस संविधान पीठ ने 1998 के झामुमो रिश्वतकांड पर पुराने फैसले को लेकर दायर पुनर्विचार याचिका को लेकर सुनवाई पूरी करते हुए, 5 अक्तूबर, 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

उस दौरान सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अदालत में रिश्वत के बदले वोट के मामले में मिले विशेषाधिकार का विरोध किया गया था। सरकार की ओर से कहा गया कि रिश्वतखोरी या घूसख़ोरी को कभी भी अभियोजन से छूट का विषय नहीं माना जा सकता है। साथ ही यह भी दलीलें दी गई कि संसदीय विशेषाधिकार का मतलब किसी सांसद या विधायक को कानून से ऊपर समझे जाने का नहीं है।

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