Supreme Court Bans Electoral Bonds: काफी समय से देश में सभी को इलेक्टोरल बॉन्ड पर सर्वोच्च अदालत के फैसले का इंतजार था, जो अब आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगा दी है। इतना ही नहीं बल्कि देश की सर्वोच्च अदालत ने टिप्पणी की है कि यह इलेक्टोरल बॉन्ड सिस्टम सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है।
दिलचस्प रूप से सर्वोच्च अदालत ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को साल 2019 से अब तक की सारी इलेक्टोरल बॉन्ड लिस्ट की जानकारी देने का भी फरमान सुनाया है। एसबीआई को यह तमाम जानकारी तीन हफ्ते के भीतर भारतीय चुनाव आयोग को देनी होगी। फिर चुनाव आयोग द्वारा इन जानकरियों को सार्वजनिक किया जाएगा। इसके तहत चुनाव आयोग सारी जानकारियों को अपने आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड करेगा।
Supreme Court Bans Electoral Bonds
खास यह रहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड मामले पर यह फैसला पाँच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से सुनाया, जिसमें मुख्य न्यायधीश – जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल रहे। फैसले के दौरान मुख्य न्यायधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा कि
“राजनैतिक प्रक्रिया में राजनीतिक दल अहम इकाई होते हैं। राजनैतिक चंदे की जानकारी वह प्रक्रिया है जिसके चलते मतदाता को वोट डालने के लिए सही चुनाव करने का विकल्प मिलता है। मतदाताओं को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे मतदान के दौरान सही चयन हो सके।”
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब कुछ ही महीनों में देश में आम चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में अदालत ने लगभग 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अवैध करार दे दिया है। अदालत ने इसके जरिए चंदा लेने पर तत्काल रोक लगा दी है। कोर्ट के मुताबिक बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है।
इतना ही नहीं बल्कि अदालत की ओर से इस स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन करार दिया गया। सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्पष्ट शब्दों में यह भी कहा कि काले धन पर काबू पाने का एकमात्र तरीका इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं हो सकता है। बेशक इसने अन्य विकल्प भी मौजूद हैं।
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इलेक्टोरल बॉन्ड के आँकड़े
गौर करने वाली बात ये भी है कि मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से सामने आई जानकारी के अनुसार, साल 2022-23 में भारत में अकेले राष्ट्रीय पार्टियों को ही ₹850.438 करोड़ की फंडिंग मिली थी। इसमें से अकेले भाजपा को ही ₹719.85 करोड़ मिले। इसमें कांग्रेस को ₹79.92 करोड़ प्राप्त हुए थे।