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सांवली त्वचा वाली महिलाओं के प्रति बदलना होगा समाज का नजरिया: हाईकोर्ट

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High Court Comments on the Attitude of Society Toward Dark-Skinned Women: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (हाईकोर्ट) ने एक मामले की सुनवाई के दौरान समाज के अहम पहलू पर टिप्पणी करते हुए, लोगों को अपना नजरिया बदलने तक की नसीहत दी। असल में हाईकोर्ट ने सांवली त्वचा वाली महिलाओं को लेकर भेदभावपूर्ण मानसिकता/दृष्टिकोण का जिक्र किया।

अदालत के कहा कि सांवली त्वचा वाली महिलाओं को अक्सर ‘कम आत्मविश्वास और असुरक्षित व्यक्ति’ के रूप में चित्रित किया जाता है। ऐसा लगता है कि जब तक कोई उन्हें गोरा होने के लिए किसी तरह की फेयरनेस क्रीम नहीं सौंपता है, तब तक वह सफलता हासिल करने में असमर्थ होती हैं। इस टिप्पणी के दौरान न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ‘ऐसी सोच या नजरिए को बदलने की जरूरत है।

क्या था मामला?

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी और न्यायमूर्ति दीपक कुमार तिवारी की पीठ एक वैवाहिक विवाद संबंधी मामले की सुनवाई कर रही थी। इस मामले में पति की ओर से अपनी याचिका में पत्नी पर बिना कारण उसे छोड़ने और साथ ही सीआरपीसी (CrPc) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए आवेदन करने का आरोप लगाया था।

दूसरी ओर पत्नी का कहना था कि उसके सांवले रंग के चलते पति ने उसका भावनात्मक शोषण (अनुचित टिप्पणियाँ आदि) किया। साथ ही पति पर शारीरिक उत्पीड़न और वैवाहिक घर से बेदखल करने जैसे आरोप भी लगाए गए थे।

Attitude of Society Toward Dark-Skinned Women

अदालत ने क्या कहा?

इस मामले में दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि उसे पत्नी के आरोप ज्यादा तर्कसंगत लग रहे हैं। गौर करने वाली बात ये भी रही कि कोर्ट ने तलाक के लिए उसके पति द्वारा दिए आवेदन को खारिज करते हुए कहा कि अदालत उसे सांवली त्वचा की तुलना में गोरी त्वचा को सामाजिक प्राथमिकता देने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता।

अदालत ने यह भी कहा कि

“साक्ष्यों को पूरी तरह पढ़ने के बाद, हमारा यह विचार है कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक की डिक्री प्राप्त करने के लिए पति द्वारा क्रूरता या परित्याग का कोई आधार नहीं बनाया गया है।”

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इस दौरान अदालत ने टिप्पणी की;

“सांवली त्वचा वाले लोगों के साथ उनके गोरी त्वचा वाले समकक्षों की तुलना में अक्सर भेदभाव किया जाता है। फेयरनेस क्रीम और कॉस्मेटिक इंडस्ट्री सांवली त्वचा वाली महिलाओं को ‘कम आत्मविश्वास और असुरक्षित भाव’ से भरे व्यक्ति के तौर पर चित्रित करते हुए टार्गेट करने का काम करती हैं।”

“पूरे समाज को इस नजरिए को बदलने की जरूरत है। घर पर इन चीजों के बारे में बात करने के तरीके में भी बदलाव की आवश्यकता है, ताकि त्वचा के रंग को प्राथमिकता देने जैसे दृष्टिकोण को बढ़ावा ना मिले।”

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