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बड़ी उपलब्धि! पृथ्वी पर 16 मिलियन किमी दूर से आया ‘पहला लेजर मैसेज’

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Earth Receives First Laser Message From 16 Million KM: मानव लगातार अंतरिक्ष जगत में नए कीर्तिमान गढ़ता जा रहा है। बीतें कुछ दशकों में दुनिया भर के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने कई अहम रहस्यों से पर्दा उठाया है और ‘स्पेस रिसर्च’ को लेकर तमाम उपलब्धियाँ हासिल की हैं। इसी क्रम में अब एक और नई ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज करते हुए, पृथ्वी पर पहली बार 16 मिलियन किलोमीटर (या 10 मिलियन मील) की दूरी से लेजर मैसेज प्राप्त किया गया।

जी हाँ! नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन यानी नासा (NASA) ने पृथ्वी से संदेश भेजने के बाद पहली बार 16 मिलियन (1.6 करोड़) किलोमीटर दूर से वापस इसे प्राप्त किया। दिलचस्प रूप से इसमें महज 50 सेकंड का समय लगा।

16 मिलियन किलोमीटर की इस दूरी का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि यह दूरी पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी से भी लगभग 40 गुना अधिक है।

वैसे तो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा काफी समय से रेडियो तरंगों का इस्तेमाल करके अंतरिक्ष यानों के साथ कम्यूनिकेशन स्थापित करता आ रहा है, लेकिन एजेंसी ने पहले कभी भी इतनी दूर से अंतरिक्ष में लेजर का उपयोग करके जानकारी ना ही भेजी और ना प्राप्त की थी।

Earth Receives First Laser Message From 10 Miles: कैसे किया गया प्रयोग?

नासा की ओर से इस प्रयोग के लिए डीप स्पेस ऑप्टिकल कम्युनिकेशंस (Deep Space Optical Communications  या DSOC) का इस्तेमाल किया गया। यह DSOC सिस्टम नासा द्वारा 13 अक्टूबर को फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किए गए साइकी (Psyche) स्पेसक्राफ्ट पर लगा हुआ है।

इसका इस्तेमाल लेजर-बीम संदेशों को पृथ्वी पर वापस भेजने के लिए किया जाता है। इस कड़ी में 14 नवंबर को Psyche स्पेसक्राफ्ट ने कैलिफोर्निया में पालोमर वेधशाला में हेल टेलीस्कोप (Hale Telescope) के साथ एक कम्यूनिकेशन लिंक स्थापित किया। इसी परीक्षण के दौरान DSOC के नियर-इंफ्रारेड फोटॉन को Psyche से पृथ्वी तक यात्रा करने में लगभग 50 सेकंड का समय लगा।

बता दें इस टेस्ट के दौरान डेटा को ‘क्लोजिग द लिंक’ तकनीक के तहत अपलिंक और डाउनलिंक लेजर के माध्यम से भेजा गया था। इस कम्यूनिकेशन लिंक के सफल प्रयोग को ‘पहली रोशनी’ (फ़र्स्ट लाइट) का नाम दिया गया है।

Images Credit: NASA

Earth Receives Laser Message: क्यों है अहम?

वर्तमान समय में डीप स्पेस में अंतरिक्ष यानों के साथ संचार के लिए पृथ्वी पर विशाल एंटिना आदि से भेजे और प्राप्त किए गए रेडियो संकेतों का उपयोग किया जाता है। परंतु उनकी बैंडविड्थ सीमित होती है।

इस प्रयोग के साथ नासा आखिरकार रेडियो तरंगों के बजाय ‘प्रकाश’ का इस्तेमाल करके पृथ्वी और अंतरिक्ष यान के बीच जानकारी भेज सकेगा, जिसके लिए लेजर का उपयोग किया जा सकता है। नासा के मुताबिक, यह प्रणाली वर्तमान अंतरिक्ष संचार उपकरणों की तुलना में 10 से 100 गुना अधिक तेजी से सूचना को प्रसारित करने की क्षमता रखती है।

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यह नया परीक्षण अब तक अंतरिक्ष में सबसे दूर स्थान (डीप स्पेस) से किया गया सफल ऑप्टिकल कम्यूनिकेशन परीक्षण है। बता दें ऑप्टिकल कम्यूनिकेशन को फिलहाल पृथ्वी की निचली कक्षा या चंद्रमा के बाहर अंजाम दिया गया है, लेकिन यह DSOC का डीप स्पेस में किया गया पहला सफल परीक्षण है।

जानकारों के अनुसार, अगर ऐसे तमाम प्रयोग आने वाले समय में सफल साबित होते रहे, वो निकट भविष्य में वह दिन भी आएगा, जब हम पृथ्वी से मंगल ग्रह पर वीडियो कॉल करने में भी सक्षम होंगे।

क्या है डीप स्पेस (Deep Space)?

‘डीप स्पेस’ शब्द का इस्तेमाल असल में चंद्रमा से परे अंतरिक्ष के उस विशाल अज्ञात क्षेत्र के लिए किया जाता है, जिसको लेकर अभी कई सारी जानकारियाँ उपलब्ध नहीं हैं। यह क्षेत्र मंगल ग्रह से परे सौर मंडल में अनंत तक फैला हुआ है।

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