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सतलज नदी में ‘Tantalum’ नामक दुर्लभ धातु का मिलना क्यों है खास? जानें यहाँ!

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Tantalum Rare Metal Found In Sutlej: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) रोपड़ के शोधकर्ताओं को एक बड़ी सफलता मिली है। दरअसल आईआईटी रोपड़ की टीम को पंजाब में सतलज नदी की रेत में एक दुर्लभ धातु – टैंटलम (Tantalum) मिला है। यह खोज संस्थान या पंजाब के लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए भी कई मायनों में अहम है।

टैंटलम नामक इस दुर्लभ धातु की उपस्थिति का पता आईआईटी रोपड़ के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत असिस्‍टेंट प्रोफेसर डॉ. रेस्मी सेबेस्टियन के नेतृत्‍व वाली टीम द्वारा लगाया गया है। बता दें इतिहास में सबसे पहले टैंटलम की खोज आज से लगभग 221 साल पहले स्वीडन में की गई थी।

Tantalum Found In Sutlej: क्यों खास है टैंटलम?

जैसा हमनें पहले ही बताया कि टैंटलम की गिनती दुर्लभ धातुओं में की जाती है। इसको बेहतरीन जंग रोधी धातु माना जाता है, जिसका व्यापक इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्‍टरों में होता है।

इस धातु को समार्टफोन, लैपटॉप या डिजिटल कैमरा जैसी डिवाइसों में उपयोग के लिहाज से बेहद उपयुक्त माना जाता है। टैंटेलम के बने छोटे कैपेसिटर्स भी बड़ी मात्रा में बिजली स्टोर करने की क्षमता रखते हैं।

अपने शुद्ध रूप से टैंटलम ग्रे रंग का एक लचीला धातु होता है।आवर्त सारणी में टैंटलम (Ta) का एटॉमिक नंबर 73 दर्शाया जाता है, जो इसमें पाए जाने वाले प्रोटॉन को बताता है।

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Tantalum की खूबियाँ

टैंटलम का इतिहास

जैसे हमनें पहले ही बताया, टैंटलम की खोज स्वीडन में हुई साल 1800 के लगभग हुई थी। इसकी खोज का श्रेय स्वीडिश रसायन वैज्ञानिक एंडर्स गुस्ताफ एकेनबर्ग को जाता है। उपलब्ध जानकारियों के अनुसार, शुरुआत में इसे नाइओबियम का ही एक रूप माना गया था, लेकिन 1866 में जीन चार्ल्स गैलिसार्ड डी मैरिग्नैक नामक वैज्ञानिक ने यह साफ किया कि कुछ समानताओं के बाद भी, टैंटलम और नाइओबियम अलग-अलग धातुएँ हैं।

भारत के लिए क्यों है अहम?

भारत बीतें कुछ सालों से वैश्विक पटल पर ‘इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्‍टरों’ के मैन्युफ़ैक्चरिंग हब के रूप में खुद को स्थापित करने की कोशिशें कर रहा है, जिसमें पीएलआई और मेक-इन-इंडिया जैसी स्कीमों के चलते बड़ी सफलता भी हासिल हुई है। लेकिन देश में टैंटलम जैसी धातु की उपस्थिति जाहिर तौर पर इन कोशिशों को नई ऊर्जा प्रदान करेगी।

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