Rath Prabhari Controversy: केंद्र सरकार देश में 20 नवंबर से “विकसित भारत संकल्प यात्रा” निकालने जा रही है। इस यात्रा का उद्देश्य केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ आम जनता तक पहुंचाना होगा। इसके लिए भारत सरकार के अंडर सेक्रेटरी जेएस मलिक ने सरकार की और से एक लेटर जारी किया गया है जिसमें कहां गया है कि केंद्र सरकार के 9 सालों की उपलब्धियों को दर्शाने के लिए विकसित भारत संकल्प यात्रा निकाली जाएगी। इसकी प्लानिंग, तैयारियों और क्रियान्वयन के लिए जॉइंट सेक्रेटरी, डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेटरी लेवल के अधिकारियों को रथ प्रभारी बनाया जाएगा।
पीटीआई न्यूज एजेंसी के हवाले से जानकारी प्राप्त हुई है इस यात्रा में पीएम किसान, फसल बीमा योजना, पोषण अभियान, प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण), राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, आयुष्मान भारत जैसी तमाम योजनाओं से लोगों को हुए लाभ आदि की जानकारी आम जनमानस तक पहुँचाने का काम किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 महीने में सभी लोगों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने संबंधी लक्ष्य तय किया है। पत्र के अनुसार इस दौरान सभी 765 जिलों में वरिष्ठ अधिकारियों को ‘रथ प्रभारी’ के तौर पर नियुक्त किया जाएगा। यह यात्रा देश की 2.7 लाख ग्राम पंचायतों में जाएगी।
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Rath Prabhari Controversy: क्यों हो रहा विरोध?
गौरतलब है, सरकार के इस फैसले के बाद विपक्ष – खासकर कांग्रेस – और केंद्र की मोदी सरकार एक बार फिर आमने सामने आ गई हैं। अधिकारियों को प्रचार रथ प्रभारी बनाने को लेकर कांग्रेस कड़ा विरोध जता रही है।
कांग्रेस ने बीजेपी सरकार के ऊपर आरोप लगाया की वह अब सभी एजेंसियों, संस्थाओं, हथियारों, विंग और विभागों को आधिकारिक तौर पर प्रचारक के रूप में इस्तेमाल कर रही है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी भी लिखी है और यह आदेश वापस लेने की मांग की है।
सरकार के द्वारा 18 अक्टूबर को जारी पत्र के हवाले से खड़गे ने कहा, संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव जैसे उच्च रैंक के वरिष्ठ अधिकारियों को भारत के सभी 765 जिलों में तैनात किया जाना है। उन्हें सरकार की पिछले 9 वर्षों की उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए रथ प्रभारी के रूप में तैनात किया जाएगा। उन्होंने आगे कहा;
“यह कई कारणों से गंभीर चिंता का विषय है। यह केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 का स्पष्ट उल्लंघन है, जो निर्देश देता है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी राजनीतिक गतिविधि में भाग नहीं लेगा। हालांकि, सरकारी अधिकारियों के लिए उपलब्धियों का प्रदर्शन करने के लिए सूचना प्रसारित करना स्वीकार्य है लेकिन यह उन्हें सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक कार्यकर्ताओं में बदल देता है।”
“इस प्रकार के आदेश देकर सरकार, सरकारी तंत्र को प्रचारक के रूप में उपयोग कर रही है। और सरकारी अधिकारियों व नौकशाहों को अपने प्रचार के लिए इस्तेमाल कर रही है। इसका असर आगामी होने वाले पांच राज्यों में चुनाव और लोकसभा चुनावों में भी पड़ सकता है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि अफसरों और फौजियों का इस्तेमाल सरकार प्रचार के लिए कर रही है। अपनी योजनाओं के प्रचार के लिए फौजियों और अफसरों का इस्तेमाल बंद कीजिए।”
सरकार और विपक्ष आमने-सामने
भाजपा समर्थित केंद्र सरकार इसे योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सरकारी नुमाइंदे की जिम्मेदारी बता रही है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस इसे सरकारी अफसरों और नौकरशाहों से प्रचार कराने का आरोप लगा रही है।