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भारत ने शुरू की ‘इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयरिंग हब’ बनने की कवायद, लॉन्च किया पायलट प्रोजेक्ट

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Electronics Repair Services Outsourcing (ERSO) Pilot Project: भारत आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर ‘मैन्युफैक्चरिंग’ के साथ ही साथ ‘इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयरिंग’ क्षेत्र में भी अहम हिस्सेदारी रखते हुए, अग्रणी देशों में शुमार होने की योजना बना रहा है। सरकार ने अब इस दिशा में कवायद भी शुरू कर दी है।

असल में प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) जैसी स्कीमों के तहत स्मार्टफोन और अन्य तकनीकी डिवाइसों की मैन्युफैक्चरिंग को प्रोत्साहन देने के बाद अब भारत ने चीन और मलेशिया की तर्ज पर विश्व स्तर पर ‘इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयरिंग’ हब के रूप में स्थापित हो सकने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयर सर्विसेज आउटसोर्सिंग (ERSO) नामक पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च किया है।

जी हाँ! देश के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयरिंग आउटसोर्सिंग की टेस्टिंग के लिए बेंगलुरु में तीन महीने के इस पायलट प्रोजेक्ट की शुरूआत की है। इस प्रोग्राम में Flex, Lenovo, CTDI, R-Logic और Aforeserve ने अपनी स्वेच्छा से भागीदारी की है।

इस प्रोजेक्ट को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ ही पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय समेत अन्य तमाम हितधारकों ने साथ मिलकर तैयार किया गया है।

क्या है इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयर सर्विसेज आउटसोर्सिंग (ERSO) पायलट प्रोजेक्ट? 

भारत सरकार की मानें तो इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयर सर्विसेज आउटसोर्सिंग (ERSO) नामक यह पहल देश को सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में दुनिया के लिए व्यापक ‘हेल्प सेंटर‘ या ‘इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयरिंग राजधानी‘ का दर्जा दिला सकने में मददगार साबित होगी।

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इसके तहत भारत सरकार आने वाले 5 सालों में देश की इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयर सर्विसेज आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री से लगभग $20 बिलियन तक का राजस्व कमाने की उम्मीद कर रही है। साथ ही बताया जा रहा है कि इसके जरिए रोजगार के लाखों अवसर भी पैदा होंगे।

यह भी कहा गया कि यह पायलट प्रोजेक्ट पिछले साल अक्टूबर में पर्यावरणीय स्थिरता को लेकर शुरू किए गए भारत के LiFE (Lifestyle for Environment) मिशन के भी अनुरूप होगा है।

Electronics Repair Services Outsourcing की अहमियत?

भारत तेजी से मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं को बढ़ाने की कोशिशें कर रहा है। इन प्रयासों के तहत Apple समेत तमाम दिग्गज टेक ब्रांड्स, देश में अपने प्रोडक्ट्स की ‘असेंबलिंग’ से लेकर ‘मैन्युफैक्चरिंग’ तक में इजाफा कर रहे हैं।

वहीं मौजूदा समय में वैश्विक स्तर पर ‘इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयरिंग’ का हब माने वाले जाने चीन की हालत बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव आदि के चलते दुनिया भर की कई कंपनियाँ अब चीन का विकल्प तलाशने लगी हैं, और यह भारत के लिए एक बेहतरीन अवसर माना जा रहा है।

ऐसे में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स ‘मैन्युफैक्चरिंग’ के साथ ही साथ ‘रिपेयरिंग’ क्षेत्र में भी अपनी क्षमताओं का विस्तार करते हुए, देश की जीडीपी को भी बल प्रदान करने का प्रयास करता नजर आ रहा है।

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