Uber, Ola, Dunzo among worst platforms for gig workers?: आज के दौर में दुनिया भर की तरह ही भारत में भी ऑनलाइन कंपनियों का क्रेज सिर चढ़ कर बोल रहा है। ‘कैब’ से लेकर ‘किराना डिलीवरी’ जैसी तमाम सेवाओं को पेश करने वाली तमाम कंपनियाँ, बड़ी संख्या में पार्ट-टाइम या कॉन्ट्रैक्ट (गिग वर्कर्स) आधार पर जॉब्स प्रदान कर रही हैं।
लेकिन सामने आई एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि ऐसी कई दिग्गज कंपनियों में इन ‘पार्ट-टाइम या कॉन्ट्रैक्ट ‘(गिग वर्कर्स) कर्मचारियों की स्थिति बहुत खराब है। ये कंपनियाँ अपने इन कर्मचारियों को बेहतर माहौल प्रदान कर सकने में पूरी तरह फेल साबित हुई हैं।
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असल में हम बात कर रहे हैं ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के साथ मिलकर, रिसर्च फर्म फेयरवर्क इंडिया (Fairwork India) द्वारा पेश की गई Fairwork India Ratings 2022 नामक एक रिपोर्ट की, जिसमें कुछ चौंकानें वाले तथ्य सामने आए हैं।
हाल ही में पेश की गई इस रिपोर्ट में ‘बेहतर काम के न्यूनतम मानकों’ के अनुसार ‘गिग वर्कर्स’ की कामकाजी स्थितियों के आँकलन के आधार पर कंपनियों को रैंकिंग प्रदान की गई है।
Uber, Ola, Dunzo among worst platforms for gig workers: Fairwork India Report
असल में Fairwork India की टीम ने गिग कर्मचारियों (पार्ट-टाइम या कॉन्ट्रैक्ट) के लिहाज से पाँच मानकों – ‘पेमेंट’, ‘कॉन्ट्रैक्ट’, ‘मैनेजमेंट’, ‘प्रतिनिधित्व’, और ‘काम करने की स्थिति (वर्किंग कंडिशन)’ के हिसाब से 12 कंपनियों का निष्पक्ष मूल्यांकन किया है।
Fairwork India Ratings for gig workers
हैरान करने वाली बात ये है कि इस रैंकिंग के मूल्यांकन के दौरान कैब सेवा प्रदाता – Ola, Uber, डिलीवरी सर्विस ऐप – Dunzo, ऑनलाइन फार्मेसी प्लेटफॉर्म PharmEasy और Amazon Flex जैसी दिग्गज कंपनियों को 10 में से 0 नंबर मिले हैं।
Fairwork India द्वारा रैंकिंग के लिए अन्य जिन कंपनियों का भी मूल्यांकन किया गया, उनमें BigBasket, Flipkart, Porter, Swiggy, Urban Company, Zepto, और Zomato भी शामिल हैं।
इन सभी 12 कंपनियों में से जिस कंपनी ने सबसे अधिक अंक हासिल किए वह Urban Company रही, जिसको 10 में से 7 अंक मिले। वहीं इसके बाद 10 में से 6 अंकों के साथ BigBasket दूसरे स्थान पर रहा।
Swiggy और Flipkart को 5 अंक मिले, और Zomato को 4 व Zepto को 2 अंक मिले। वहीं Porter को सिर्फ 1 अंक ही मिल सका।
दुःखद बात ये है कि इन 12 में से किसी भी कंपनी ने ‘उचित प्रतिनिधित्व’ के मामले में कोई अंक हासिल नहीं किया, जो गिग वर्कर्स की मौजूदा स्थितियों को साफ बयाँ करता है।
ये इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि बीतें कुछ सालों में गिग वर्कर्स की संख्या ना सिर्फ असाधारण रूप से बढ़ी है, बल्कि बिना इन कर्मचारियों के कई ऑनलाइन कंपनियाँ अपने संचालन के बारे में सोच तक नहीं सकती हैं।
क्या होते हैं गिग वर्कर्स?
‘गिग वर्कर्स’ उन कर्मचारियों को कहते हैं जो पार्ट-टाइम या कॉन्ट्रैक्ट के तहत एक साथ अलग-अलग या कई बार प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के लिए भी काम करते हैं। गिग वर्कर्स किसी भी कंपनियों के स्थाई कर्मचारियों के रूप में नहीं गिने जाने और इसलिए ना तो ये कंपनी की पॉलिसीज से बंधे होते हैं और ना ही इन्हें बीमा व अन्य कई कर्मचारी लाभ मिलते हैं।
एक गिग कर्मचारी को कंपनियां काम के आधार पर भुगतान करती हैं। जाहिर है ऐसे में इन कंपनियों के लिए गिग वर्कर्स काफी फायदेमंद साबित होते हैं, क्योंकि कई कम्पनियाँ इनका पूरा शोषण करती हैं।
अक्सर हम देखते ही रहते हैं कि गिग वर्कर्स कभी बेहतर कमीशन, वेतन व काम की शर्तों में बदलावों को लेकर हड़ताल करते रहते हैं, लेकिन बहुत कम उदाहरण ही ऐसे हैं जहाँ इनकी आवाज़ों को सुना जाता है।
इस बीच रिपोर्ट तैयार करने वाली टीम के प्रमुख जांचकर्ताओं में शामिल, प्रोफेसर बालाजी पार्थसारथी और जानकी श्रीनिवासन, ने कहा;
“आज के दौर में डिजिटल प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था के तहत जितने लचीलेपन व अवसरों की बात की जाती है, उतने ही इसको लेकर सवाल भी उठाते हैं। कानून के तहत गिग वर्कर स्वतंत्र ठेकेदार कहे जा सकते हैं, जिसका मतलब साफ हैं कि इन्हें असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की तरह कई श्रम अधिकारों से वंचित रखा जाता है।”
एक अनुमान के अनुसार, आने वाले साल 2025 तक देश में गिग वर्कर्स की संख्या लगभग 1 करोड़ से अधिक हो जाएगी।