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IISc और ISRO ने मिलकर बनाई ख़ास तरह की ‘ईंट’, मंगल ग्रह पर बिल्डिंग बनाने में होगी इस्तेमाल

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Space Bricks Photo Credit: (Twitter/@iiscbangalore)

‘Space Bricks’: ऐसा लगता है कि मंगल ग्रह पर इंसानी जीवन को बसाने के दिन अब पास आते आ रहे हैं। जी हाँ! आज के दौर में अब ये कोई फ़िल्मी कहानी नहीं रही बल्कि इस ओर कई सार्थक प्रयास होते नज़र आने लगे हैं।

असल में जहाँ एक ओर Elon Musk के मालिकाना हक वाली SpaceX जैसी कंपनियाँ मंगल ग्रह पर जाने के लिए लंबी दूरी के रॉकेट आदि बनाने में व्यस्त हैं। वहीं अब भारत में भी इस सपने को हक़ीक़त बनाने की दिशा में हो रहे प्रयास सुर्ख़ियाँ बटोरने लगे हैं।

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असल में हाल में बेंगलूरु आधारित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वैज्ञानिकों ने मिलकर अंतरिक्ष में बिल्डिंग आदि बना सकने में इस्तेमाल हो सकने जैसी ‘ईंट’ – ‘Space Bricks’ (अंतरिक्ष ईंट) तैयार की है।

‘Space Bricks’ – Making Procedure & All:

आपको बता दें Plos One नामक एक पत्रिका में IISc व ISRO की इस रिसर्च से संबंधित एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है, जिसमें इन ‘अंतरिक्ष ईंटों’ को बनाने के विषय में पूरी जानकारी मिलती है।

वैसे मुख्य तौर पर आप ऐसे समझ सकते हैं कि भारतीय वैज्ञानिकों ने इस ‘अंतरिक्ष ईंट’ को बनाने के लिए मंगल की सिमुलेंट सॉयल (MSS) यानि उस ग्रह की ‘प्रतिकृति मिट्टी’ और ‘यूरिया’ का इस्तेमाल किया है।

रिपोर्ट में ये सामने आया है कि इस अंतरिक्ष ईंटों को बनाने के लिए सर्वप्रथान मंगल ग्रह की मिट्टी को ग्वार गम, स्पोरोसारसीना पेस्टुरी (Sporosarcina Pasteurii) नाम के बैक्टीरिया, यूरिया और निकल क्लोराइड (NiCl2) के साथ मिला कर एक घोल तैयार किया गया।

इसके बाद वैज्ञानिकों ने इस तैयार घोल को ईंट के आकार के सांचों में डाल कर रख दिया। ऐसे करने पर बैक्टीरिया ने कुछ ही दिनों बाद यूरिया को कैल्शियम कार्बोनेट के क्रिस्टल के रूप में परिवर्तित कर दिया।

Photo Credit: Plos

दिलचस्प रूप से इस प्रकार बने क्रिस्टल मुख्यतः बैक्टीरिया द्वारा स्रावित किए गए बायोपॉलिमर के साथ मिलकर मिट्टी के कणों को आपस में बांधे रखने का काम करते हैं।

वहीं जारी की गई एक प्रेस विज्ञप्ति में IISc ने बताया;

“इन ‘अंतरिक्ष ईंटों’ का इस्तेमाल हमारे पड़ोसी ग्रहों पर इंसानों के लिए इमारत व बस्ती आदि बनाने में किया जा सकता है। हाँ! इतना देखना अभी भी बाक़ी है कि क्या ये “ख़ास ईंटें” लाल ग्रह पर टिकाऊ साबित होती हैं या नहीं?”

संस्था का यह सवाल इसलिए है क्योंकि लाल ग्रह की मिट्टी काफ़ी जहरीली मानी जाती है, और इसके वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता (क़रीब 95% तक) है और वातावरण 100 गुना अधिक पतला है।

इसलिए ये वैज्ञानिक अब मंगल ग्रह के वायुमंडल और कम गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के तहत इन ईंटों की क्षमता को परखने का काम करेंगें। इसके लिए मार्शियन एटमॉस्फियर सिमुलेटर (Martian AtmospheRe Simulator) नामक एक डिवाइस का इस्तेमाल किया जाएगा, जो लैब में ही मंगल ग्रह पर पाई जाने वाली वायुमंडलीय जैसी परिस्थितियाँ तैयार करने में मदद करेगी।

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कहाँ से मिली मंगल ग्रह की मिट्टी?

आपमें से बहुत से लोग शायद ये सोच रहें हों कि आख़िर IISc और ISRO के वैज्ञानिकों ने इस मात्रा में मंगल ग्रह की मिट्टी हासिल कहाँ से की?

तो आपकी शंका को दूर करते हुए बता दें कि यह मिट्टी मंगल ग्रह से प्राप्त नहीं की गई है, बल्कि हुबहू वैसी ही मिलती-जुलती मिट्टी (मिट्टी के सिमुलेंट) का इस्तेमाल किया गया है, जिसको फ्लोरिडा से हासिल किया गया है।

इस बीच IISc में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर और इस रिसर्च में बतौर शोधकर्ता जुड़े रहने वाले, आलोक कुमार ने कहा;

“मंगल ग्रह की मिट्टी से ईंट बनाना आसान नहीं है, क्योंकि इस मिट्टी में आयरन ऑक्साइड की अधिकता है। इसके चलते इस मिट्टी में बैक्टीरिया पैदा नहीं हो पाते हैं। पर निकल क्लोराइड का इस्तेमाल करके इस मिट्टी को बैक्टीरिया के अनुकूल बनाया जा सका है।”

वैसा ISRO और IISc के वैज्ञानिकों ने ऐसा कुछ पहली बार नहीं किया है। आपको याद दिला दें अगस्त 2020 में भी इन संस्थानों ने चांद की मिट्टी से कुछ ऐसा ही करके दिखाया था।

उस समय चांद की मिट्टी से ईंट बनाने की प्रक्रिया के दौरान सिर्फ बेलनाकार ईंटें ही सफ़लतापूर्वक बनाई जा सकीं थी, पर अब ये नए प्रयोग के ज़रिए चौकोर आकार की भी ईंट देखने को मिलती हैं।

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