इस बात में कोई शक नहीं है कि तस्वीरें हम सभी के जीवन में काफ़ी मायनें रखती हैं। अधिकतर तस्वीरें तो ऐसी होती हैं जिनको हम ज़िंदगी भर संजो कर रखना चाहते हैं, ताकि उन बीते पलों को उन तस्वीरों के सहारे ही भविष्य में जिया जा सके।
लेकिन कई बार ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है कि मौसम जैसे बारिश, नमी आदि के चलते वो अनोमल तस्वीरें धुंधली या ख़राब हो जाती हैं। और उसी से साथ धुंधली पड़ जाती हैं उन तस्वीरों से जुड़ी यादें भी, जो ज़ाहिर है कोई भी नहीं चाहता है।
पर सवाल उठता है एक बार किन्ही कारणों के चलते ख़राब या धुंधली हो चुकी तस्वीरों को भला फिर से वापस पहले जैसा कैसे किया जाए? अब हम समय में पीछे जाकर तो ऐसा कर नहीं सकते! लेकिन इस अहम सवाल का जवाब तलाशा है आईआईटी मद्रास के डॉ॰ ए. एन. राजगोपालन (Dr A.N Rajagopalan) की टीम ने, जिन्होंने ऐसी ख़राब हो चुकी तस्वीरों को डिजिटल रूप से वापस ठीक करने का एक अनूठा तरीक़ा खोजा है।
ग़ौर करने वाली बात ये है कि अब फोटोग्राफी सिर्फ़ पर्सनल यादों को संजोने का ज़रिया ही नहीं है, बल्कि अब ये निगरानी, ड्रोन उड़ान, फ्यूचरिस्टिक ऑटोनॉमस ड्राइविंग सिस्टम और अन्य कई क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल होती है।
पर इन सभी तरह के इस्तेमाल में एक चीज़ कॉमन है, और वह है तस्वीरों का क्लीयर (साफ़) होना, जो कभी भी धुंधली या ख़राब ना हो जाएँ।
मौसम हमेशा से ही साफ़ तस्वीरें हासिल करने को लेकर चुनौती पैदा करता है, ख़ासकर पहाड़ी क्षेत्रों में जहाँ बारिश काफ़ी होती है और जिसके चलते निगरानी कैमरे साफ़ फुटेज प्रदान नहीं कर पाते।
लेकिन अब आईआईटी मद्रास के डॉ. राजगोपालन की टीम ने आर्टिफ़िशल न्यूरल नेटवर्क (Artificial Neural Networks) तकनीक की मदद से ख़राब तस्वीरों को ठीक करने का तरीक़ा तलाशा है।
बता दें डॉ. ए.एन. राजगोपालन आईआईटी मद्रास में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग में स्टरलाइट टेक्नोलॉजीज चेयर प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। वह संस्थान में ईमेज प्रॉसेसिंग एंड कंप्यूटर विज़न लैब के संचालन की ज़िम्मेदारी भी संभाल रहे हैं।
डॉ. राजगोपालन के नेतृत्व वाली इस टीम में आईआईटी मद्रास के मैत्रेय सुइन (Maitreya Suin) और कुलदीप पुरोहित (Kuldeep Purohit) भी शामिल हैं।
टीम कैसे करती है Artificial Neural Networks का इस्तेमाल?
आईआईटी मद्रास की इस टीम के काम को हाल ही में सिग्नल प्रोसेसिंग में चयनित विषयों के प्रतिष्ठित IEEE जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
इस टीम ने न्यूरल नेटवर्क (Neural Networks) का इस्तेमाल कुछ एक तरह से किया है कि बारिश की धारियों, बारिश की बूंदों, धुंध और मोशन ब्लर आदि के चलते प्रभावित ख़राब हुई तस्वीरों को ठीक किया जा सके। इस दौरान टीम ने पाया कि तस्वीरों के ख़राब हो चुके भाग की पहचान करके उसको ठीक करने के लिए सिर्फ़ सिंगल न्यूरल नेटवर्क (Neural Networks) का इस्तेमाल करके काम नहीं बनेगा। इसलिए उन्होंने इस काम को दो चरणों में बाँटने का फ़ैसला किया। पहले चरण में एक नेटवर्क को तस्वीर के ख़राब हिस्से को पहचानने के लिहाज़ से तैयार किया गया वहीं दूसरे चरण में नेटवर्क को तस्वीर के उस ख़राब हिस्सों को वापस से ठीक करने के लिहाज़ से इस्तेमाल किया गया।
इस तकनीक को लेकर डॉ. राजगोपालन ने कहा;
“हमने एक डीप लर्निंग नेटवर्क विकसित किया है जो तस्वीर ठीक करने के काम को दो चरणों में बाँट देता है: पहला ख़राब जगह को पहचानना और दूसरा उसको ठीक करना।”
“हमारी इस तकनीक का आधार ये है कि ख़राब तस्वीर में ख़राब को चुके हिस्से की असल पहचान का अनुमान लगाने के लिए ऑक्जिलरी टास्क का इस्तेमाल किया जाए। हमनें ये पाया है कि इस ऑक्जिलरी टास्क को हल करने से न्यूरल नेटवर्क के चरणों में ख़राबी को पहचाननें की क्षमता बढ़ जाती है। और इस बढ़ी हुई क्षमता के ज़रिए तस्वीरें को लेकर हासिल अतिरिक्त नॉलेज को दूसरे चरण में तस्वीर को ठीक करने वाले मुख्य न्यूरल नेटवर्क में ट्रांसफ़र करने से नेटवर्क ख़राब हिस्से को ठीक करने के लिए डिस्टिलेशन और फ़ोकस के साथ ही इस अतिरिक्त नॉलेज को जोड़कर, काम को और भी कुशलता से अंजाम दे पाता है।”
बता दें इस टीम ने बारिश की धारियों, धुंध, बारिश की बूंदों और मोशन ब्लर आदि से ख़राब तस्वीरों का सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटासेट का उपयोग करके टेस्टिंग की है। इसके लिए उन्होंने तस्वीरों के ख़राब हिस्सों का प्रेडिकशन (भविष्यवाणी) करने के साथ ही तस्वीर सुधारने के लिए डिस्टिलेशन तकनीक का इस्तेमाल किया। इस इस्तेमाल की गई तकनीक से हासिल हुई ठीक तस्वीर अन्य मौजूदा तरीक़ों की तुलना में बेहतर परिणाम के साथ नज़र आई।
इस पर टिप्पणी करते हुए इसी क्षेत्र में कार्य कर रहीं आईआईटी दिल्ली की प्रो. सुमन्त्र दत्ता रॉय (Prof. Sumantra Dutta Roy) ने कहा;
“टीम ने डीग्रेशन मास्क प्रेडिक्शन की क्षमताओं को दर्शाया है। इनके पास बारिश-लकीर हटाने, धुंध हटाने, और मोशन ब्लर को ठीक करने के लिए वन-साइज़-फ़िट-ऑल फ़्रेमवर्क है। साथ ही अलग-अलग तरीक़ों से ख़राब तस्वीरों को ठीक करने के लिए डीग्रेशन मास्क आदि का इस्तेमाल इस क्षेत्र में रिसर्च को लेकर एक अहम पड़ाव है।”