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हरियाणा का नया “प्राइवेट नौकरी आरक्षण कानून” क्या बदल देगा गुरुग्राम के “आईटी हब” का स्वरूप?

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मंगलवार (2 मार्च) को मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार ने बताया था कि हरियाणा के राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य ने प्रदेश में Haryana State Employment of Local Candidates Bill, 2020 को मंज़ूरी दी है। इस बिल के तहत हर महीने ₹50,000 तक की तनख्वाह वाली प्राइवेट सेक्टर से जुड़ी स्थानीय नौकरियों में हरियाणा के युवाओं को 75% तक आरक्षण देने का क़ानून बनाया गया है।

बता दें अभी तक हरियाणा सरकार द्वारा इस बिल को अधिसूचित (नोटिफ़ाई) नहीं किया गया है। लेकिन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि यह जल्द किया जाएगा।

हरियाणा विधानसभा ने पिछले साल इस बिल को पास किया था। असल में ये क़दम सत्तारूढ़ गठबंधन की सदस्य जननायक जनता पार्टी द्वारा किए गए एक प्रमुख चुनावी वादों में से एक था।

हरियाणा के प्राइवेट नौकरियों में 75% आरक्षण क़ानून पर चिन्ताएँ?

लेकिन अब इसको लेकर इंडस्ट्री में कुछ हलचल नज़र आने लगी है। ज़ाहिर है प्राइवेट सेक्टर में ₹50,000 तक या इससे कम वेतन वाली नौकरियों की बात की जाए तो देश की आईटी इंडस्ट्री (IT Industry) सबसे अधिक ऐसी जॉब्स देने वाली कुछ चुनिंदा इंडस्ट्री में से एक है।

और इसमें भी गुरुग्राम, जो हरियाणा के सबसे बड़े शहरों में से एक है और बेंगलुरु और हैदराबाद के बाद भारत के इंजीनियरों को सबसे अधिक जॉब्स देने का गढ़ माना जाता है, वहाँ इस नए क़ानून के प्रभाव को लेकर अब चर्चा तेज हो गई है।

दरसल कई वैश्विक और स्थानीय टेक दिग्गज़ कंपनियों जैसे Google, Microsoft, Tata Consultancy Services (TCS), Infosys आदि के एक अहम गढ़ के रूप में स्थापित हो चुका गुरुग्राम भी सीधे तौर पर इस नियम से प्रभावित होगा। सीधी भाषा में कहें तो गुरुग्राम में ऑफ़िस चला रही ये बड़ी बड़ी कंपनियों को भी इन नियमों का पालन करना होगा।

आलम ये है कि ईटी की एक रिपोर्ट में Nasscom के एक सूत्र द्वारा कहा गया कि इंडस्ट्री में लोगों को योग्यता के आधार पर काम पर रखा जाता है न कि उनके पते के आधार पर।

हरियाणा आरक्षण: आईटी इंडस्ट्री को डर?

असल में कुछ जानकारों का ये मानना है कि प्राइवेट क्षेत्र में स्थानीय नौकरी आरक्षण का ये क़दम शायद कई कंपनियों और इस इंडस्ट्री के लिए नुकसान की वजह बन सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार इंडस्ट्री से जुड़े कुछ अधिकारियों का मानना ​​है कि यह हरियाणा सरकार के इस नए क़ानून के तहत सबसे अधिक प्रभावित आईटी इंडस्ट्री ही होगी, क्योंकि इनके 70% के करीब कर्मचारियों के पास पांच साल से कम का वर्किंग अनुभव है। और सभी कर्मचारियों में से लगभग आधे कर्मचारी प्रति माह ₹50,000 से कम वेतन पर काम कर रहे हैं।

लेकिन साफ़ कर दें कि भले ये क़ानून अभी तक हरियाणा सरकार द्वारा नोटिफ़ाई नहीं किया गया हो, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि इसके लागू होने के बाद ये केवल नई नौकरियों पर लागू होगा न कि कंपनियों के मौजूदा रोल्स पर।

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असल में आउटसोर्सिंग और आईटी सेवाओं के अलावा, गुरुग्राम और मानेसर में बसी हुई इंडस्ट्री बेल्ट की बात करें तो इसमें ऑटोमोबाइल, उपभोक्ता सामान और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफ़ैक्चरिंग जैसी कंपनियों की भी एक बड़ी लिस्ट है, जो इन जगहों पर अपने कारख़ाने चला रही है।

इन नए नियमों के आने से एक डर ये भी है कि ये तमाम कंपनियों पलायन का रास्ता भी अपना सकती है, और हो सकता है कि कई कंपनियाँ अपने नए परिचालन को स्थापित करने के लिए किसी अन्य जगहों व विकल्पों की तलाश करें।

वित्त वर्ष 2020-21 में टेक इंडस्ट्री ने पूरे भारत में 138,000 से अधिक लोगों को नौकरियाँ दी थी, जिसके चलते इस इंडस्ट्री में काम करने वाले कुल कर्मचारियों की संख्या 4.47 मिलियन तक पहुँच गई है।

इस साल भारतीय आईटी और व्यवसाय प्रक्रिया प्रबंधन (BPM) फर्मों के द्वारा कॉलेज कैम्पस से क़रीब 100,000 लोगों को नौकरियाँ देने का अनुमान है।

और इसके पहले हरियाणा ने ये भी कहा था कि सभी वैश्विक BPM कर्मचारियों का लगभग 5% अकेले गुरुग्राम में ही है। अब देखना ये है कि तमाम इंडस्ट्री को लेकर इतनी अहमियत रखने वाले हरियाणा में इस नए क़ानून के आने के बाद इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?

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