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मंगल ग्रह की सतह पर उतरा नासा का ‘पर्सीवरेंस रोवर’; भेजी पहली तस्वीर

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अमेरिका की जानी मानी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा‘ (NASA) ने एक और नया इतिहास रच दिया है। असल में NASA ने मंगल ग्रह (Mars) पर अपना पर्सीवरेंस (Perseverance) रोवर सफलतापूर्वक लैंड करवाने में कामयाब रहा है।

ख़ास बात ये है कि ये पर्सीवरेंस (Perseverance) रोवर पृथ्वी से क़रीब सात महीने पहले, 30 जुलाई 2020 को टेकऑफ़ हुआ था और अब जाकर इसने मंगल ग्रह पर उतरने में सफ़लता प्राप्त की है।

भारतीय-अमेरिकी मूल की वैज्ञानिक ने किया नेतृत्व

ये रोवर जिसको आम भाषा में यान भी कहा जा सकता है, असल में मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाआओं की तलाश करेगा। सबसे दिलचस्प बात ये है कि NASA ने ये बड़ी कामयाबी भारतीय-अमेरिकी मूल की वैज्ञानिक डॉ. स्वाति मोहन की अगुवाई में हासिल की है।

इस बीच इस सफ़लता को लेकर NASA की वैज्ञानिक डॉ. स्वाति मोहन ने कहा;

“मंगल ग्रह पर टचडाउन (उतरने) की पुष्टि हो गई है! अब यह रोवर वहाँ जीवन की संभावनाओं की तलाश शुरू करेगा।”

ज़ाहिर सी बात है कि अंतरिक्ष क्षेत्र में ये एक बड़ी सफ़लता के रूप में दर्ज हो गई है। आपको बता दें भारतीय समय के अनुसार शुक्रवार सुबह करीब 2:25 पर NASA का र्सीवरेंस (Perseverance) रोवर मंगल ग्रह पर लैंड हुआ।

इसको लेकर उत्साह तब और भी बढ़ गया जब इस रोवर ने वहाँ से पहली तस्वीर भेजी। जी हाँ! रोवर के लैंड करने के बाद NASA ने इससे मिली पहली तस्वीर जारी कर दी है।

ये छह पहिए वाला रोवर मंगल ग्रह पर तमाम तरह की जानकरियाँ जुटाएगा और कहा तो ये भी जा रहा है कि इसके ज़रिए धरती में मंगल ग्रह की सतह का टुकड़ा आदि लाने की भी कोशिश की जाएगी, जिससे वहाँ के बारे में और भी अच्छे से वैज्ञानिक अध्ययन किया जा सके।

मंगल ग्रह जिसको अक्सर लोग लाल ग्रह भी कहते हैं, उसको लेकर कहा ये जाता है कि वहाँ जीवन क़रीब तीन से चार अरब साल पहले था, और उस वक़्त ग्रह में पानी के भी श्रोत होने का दावा किया जाता है।

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NASA Perseverance की भेजी पहली तस्वीर

ये पर्सीवरेंस (Perseverance) रोवर असल में मंगल के कुछ सबसे दुर्गम माने जाने वाले जेजेरो क्रेटर पर लैंड हुआ है। कहा जा रहा है कि पहले वहाँ पानी हुआ करता था, लेकिन अब उस जगह पर खाईयां, नुकीले पहाड़ और पत्थर ही हैं।

7 फीट के रोबोटिक आर्म, 23 कैमरे, दो माइक्रोफोन और एक ड्रिल मशीन से लैस ये रोवर मंगल ग्रह पर एक साल (पृथ्वी के हिसाब से 687 दिन) तक रहेगा। इसके बाद ये वहाँ के कुछ सैंपल्स के साथ वापस पृथ्वी पर लाया जाएगा।

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