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अब WhatsApp जैसी इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप्स या ईमेल के ज़रिए भेजा गया समन/नोटिस भी होगा मान्य: सप्रीम कोर्ट

अब WhatsApp जैसी इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप्स या ईमेल के ज़रिए भेजा गया समन/नोटिस भी होगा मान्य: सप्रीम कोर्ट

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डिजिटल दौर को हर कोई बड़ी सहजता से अपना रहा है और मौजूदा हालातों में तो और भी! और अब देश के क़ानून ने भी इसकी स्वीकारता को बढ़ावा दिया है।

दरसल, ईटी के हवाले से सामने आई रिपोर्ट के अनुसार देश के सर्वोच्च न्यायालय यानि सप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस बात पर सहमति जताई है कि न्यायिक प्रक्रियाओं के लिए लोगों को नोटिस और समन देने में अब ईमेल के अलावा WhatsApp और Telegram जैसी इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप्स का इस्तेमाल भी कानूनी रूप से मान्य होगा।

ज़ाहिर तौर पर यह इन इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप्स के लिए एक बेहद अहम फ़ैसला है, जो इन्हें बाज़ार में और बढ़ावा देता नज़र आएगा। दरसल पहले से ही सरकार में आधिकारिक काम के लिए अनौपचारिक रूप से ही सही लेकिन बड़े पैमाने पर इन सेवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन अब इसमें क़ानूनी मुहर ही लग गई है।

आपको बता दें मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे और जस्टिस आर एस रेड्डी और ए एस बोपन्ना की पीठ ने यह आदेश जारी करते हुए कहा कि इस तरीक़े की बेहद आवश्यकता थी क्योंकि लॉकडाउन के दौरान नोटिस और समन की ऑफ़लाइन डिलीवरी थोड़ी मुश्किल साबित हो रही थी।

आपको बता दें पीठ ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के सुझावों पर सहमति व्यक्त की कि ईमेल के माध्यम से समन और नोटिस भेजना अब क़ानूनी रूप से भी वैध हो जाएगा, जो प्रतिवादी को अदालत के समक्ष पेश होने या अदालत के प्रश्न का जवाब देने के लिए जवाबदेह बनाएगा।

इस बीच मैसेजिंग सेवाओं पर वेणुगोपाल ने WhastApp के बारे में एक विशेष टिप्पणी करते हुए कहा;

“क्योंकि इस मैसेंजर सेवा का दावा है कि यह एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड है, इसलिए WhatsApp के माध्यम से भेजे गए समन/नोटिस की वैध सेवा को साबित करना मुश्किल भी हो सकता है।”

लेकिन इसके जवाब में CJI ने उत्तर देते हुए का;

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“यदि संदेश के रूप में भेजे गए नोटिस/समन में दो ब्लू टिक दिखाई देते हैं, तो यह वैध सेवा के रूप में माना जाएगा।”

लेकिन इस बीच मेहता ने यह भी कहा कि WhastApp सेटिंग्स से छेड़छाड़ करना आसान है, जिससे प्राप्तकर्ता के पास मैसेज आते हुए भी वह चाहे तो ब्लू टिक ऑफ़ कर सकता है।

इस पर कुछ वरिष्ठ अधिवक्ता मेहता की इस बात से सहमत हुए और कहा कि इससे समन/नोटिस हासिल करने के बाद भी प्राप्तकर्ता ऐसा कह सकता है की उसको इस मामले की जानकारी ही नहीं थी।

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